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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन पृथ्वी के महान् राजा को चक्रवर्ती कहा जाता है, जैन परम्परा में १२ चक्रवर्ती राजाओं की कल्पना है ।२ इनमें से १० वें हरिषेण एवं १२ वें ब्रह्मदत्त इसी नगरी से सम्बन्धित थे।३ जिनप्रभसूरि ने भी इसी मान्यता का उल्लेख किया है। श्वेताम्बर जैन मान्यतानुसार मूल सिद्धान्तों की प्रामाणिकता में शंका प्रकट करने वाले या भिन्न प्रकार से उसका अर्थ बतलाने वाले श्रमण को निह्नव कहा जाता है। उनके यहां कुल ७ निह्नवों की चर्चा है, उनके नाम हैं-जामालि, तिस्यगुप्त, आसाढ़, असिमित्र, गंग, रोहगुप्त और गोष्ठामिहिल। वीर निर्वाण के २२० वर्ष पश्चात् आर्य महागिरि का प्रशिष्य और कौडिन्य का शिष्य असिमित्र चम्पा नगरी के लक्ष्मीधरचैत्य में चतुर्थ निह्नव हुआ और उसने काम्पिल्यपुर की भी यात्रा की। यही बात जिनप्रभसूरि ने भी कही है। १. आवश्यकचूर्णी, पूर्व भाग, पृ० २०८ २. होही सगरो मघवं, सणंकुमारो य रायसद्लो । संत्ती कुथू अ अरो, होइ सुभूमो य कोरवो ॥ णवमो अ महापउमो, हरिसेणो चेव रायसठूलो । जयनामो अ नरवई, बारसमो वंभदत्तो अ ।। आवश्यकनियुक्ति, ३७४-३७५ ३. आवश्यकनियुक्ति, ३९७-४०० ४. आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० ४१५ बहुरय जमालिपभवा, जीवपएसा य तीसगुत्ताओ। अव्वत्ताऽऽसाढाओ, सामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ । गंगाओ दोकिरिया, छल गा तेरासियाण उप्पत्ती । थेरा य गोट्ठमाहिल, पृट्ठमबद्धं पविति ।। आवश्यकनियुक्ति ७८०-७८९ ६. सामिस्स दो वाससताणि वीसुत्तराणि सिद्धि गतस्स तो चउत्थो उप्पण्णो । महिला नगरी, लच्छीधरं चेतियं, महागिरी य आयरिया, तत्थ तेसि सीसो कोडिण्णो, तस्सऽवि आसमित्ती सीसो..... ...... ............ ..."भावेतो कंपेल्लपुरं गतो। आवश्यकचूर्णी, पूर्व भाग, पृ० ४२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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