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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन स्तोत्र के ३१वें छंद में इसका स्पष्ट संकेत है कि कमठ ने पाश्वनाथ पर उपसर्ग किया। प्राम्भारसम्भृतनभांसि रजांसि रोषाद् उत्थापितानि कमठेन शठेन यानि । छायापि तैस्तव न नाथ ! हता हताशो ग्रस्तस्त्वमीभिरयमेव परं दुरात्मा ॥ -कल्याणमन्दिरस्तोत्र -३१ (हे स्वामी, उस शठ कमठ ने क्रोधावेश में जो धूल आप पर फेंकी, वह आपकी छाया पर भी आघात न पहुंचा सकी। ) इससे अनुमान होता है कि सिद्धसेन दिवाकर के समय तक कमठ, पार्श्वनाथ के विरोधी के रूप में ज्ञात रहा, बाद में जब उत्तरकालीन ग्रन्थों में पार्श्वनाथ के पूर्व भवों का विस्तृत वर्णन किया जाने लगा तब कमठ को उनके प्रथम-भव का विरोधी मान लिया गया और अंतिम भव के विरोधी को विभिन्न नाम दे दिये गये। पार्श्वनाथ पर किये गये उपसर्ग को दूर करने का श्रेय दोनों सम्प्रदायों के ग्रन्थों में धरणेन्द्र को समान रूप से दिया गया है। परन्तु यह उपसर्ग कहाँ घटित हुआ, इसके बारे में मतभेद है। श्वेताबर परम्परानुसार यह घटना "आश्रम"१ में घटित हुई और दिगम्बरों के अनुसार "दीझावन"२ में। परन्तु यह स्पष्ट हो जाता है कि नगर के बाहर किसी उपवन या एकान्त स्थल पर ही यह घटना घटित हुई । आचाराङ्गनियुक्ति (कर्ता भद्रबाहु 'द्वितीय' रचनाकाल प्रायः ५२५ई. सन्) के अनुसार धरणेन्द्र ने अहिच्छत्रा नगरी में पार्श्वनाथ की महिमा १. एवं च भवयं पासनाहो कुक्कुडेसराओ निक्खंतो गामाणुगामं विहरमाणो संपत्तो पुवुते आसमपयंमि । -पासनाहचरियं ३।१९१ २. नयन्स चतुरो मासान्, छामस्थ्येन विशुद्धिभाक् । दीक्षाग्रहवने देवदारुभूरिमहीरुहः ।। -उत्तरपुराण ७३३१३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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