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________________ उत्तर भारत के जैन तीर्थ में ही प्राप्त होती है, फिर भी उन पर कमठ द्वारा किये गये उपसर्ग की यहां चर्चा नहीं मिलती । उत्तरकालीन जैन ग्रन्थों', जिनमें पाश्वं. नाथ के जीवनचरित्र का विवरण है, उनपर किये गये उपसर्गों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। इन विवरणों में कोई भेद है तो वह बिघ्न डालने वाले के नाम और स्थान का । उत्तरपुराण (गुणभद्र९वीं शती उत्तरार्ध), महापुराण (पुष्पदन्त-रचनाकाल ९६५ई० सन्) आदि ग्रन्थों में विघ्नकर्ता का नाम शंबर दिया गया है। पार्वनाथचरित (वादिराज-रचनाकाल शक संवत् ९४७) में उसका नाम भूतानन्द बतलाया गया है । सिरिपासनाहचरिय' (देवप्रभसूरि, रचना काल वि०सं० ११६८), त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित५-(हेमचन्द्र वि०सं० ११४५-१२२९) तथा श्वेताम्बर परम्परा के अन्य सभी ग्रन्थों-जिनमें पार्श्वनाथ का जीवन-विवरण प्राप्त होता है, उस विघ्नकर्ता का नाम मेघमलिन दिया गया है। पासणाहचरिउ (पद्मकीत्ति - ई० सन् की १०वीं शताब्दी) में भी यही नाम मिलता है। पार्श्व के ध्यानावस्था में विघ्न डालने का वर्णन श्वेताम्बर या दिगम्बर -किस परिपाटी या सम्प्रदाय से प्रारम्भ हआ, यह कहना कठिन है। यह निश्चित है कि कल्पसूत्र की रचना के पश्चात् और उत्तरपुराण की रचना के पूर्व यह मान्यता अस्तित्व में आयी। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा प्रणीत कल्याणमंदिरस्तोत्र से ज्ञात होता है कि उस समय तक यह मान्यता स्थापित हो चुकी थी कि पार्श्व के तप को कमठ द्वारा भंग करने का प्रयास किया गया। इस १. जिनरत्नकोश, पृ० २४४-२४८ २. जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, भाग ४, पृ० १ ३. पार्श्वनाथचरित्र-१०/८८ ४. ताव पुव्वुत्तकढो, मेहकुमारत्तणेण वट्टतो । सिरिपासणाहचरिउ ३।१९१ ५. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित-९/३ । ६. तं पेक्षेवि धवलज्जल थक्क उ अविचल मेहमल्लिभडु कुद्धउ । -पासणाहचरिउ १४।५।११९ ७. मोदी, प्रफुल्लकुमार-संपा० पासणाहचरिउ, प्रस्तावना, पृ० ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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