SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८१ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २. अहिच्छत्रानगरीकल्प अहिच्छत्रा प्राचीन भारतवर्ष के प्रमुख नगरियों में एक थी। ब्राह्मगीय, बौद्ध और जैन साहित्य में इसके बारे में विवरण प्राप्त होता है। वर्तमान में यहां हुए उत्खनन से उपलब्ध अवशेषों से यहाँ की प्राचीन स्थिति पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है। __ अहिच्छत्रा जैनों का एक प्रसिद्ध तीर्थ है। ज्ञातधर्मकथा तथा आवश्यकनियंक्ति आदि प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख है। जिनप्रभसरि ने भी इस नगरी का जैनतीर्थ के रूप में उल्लेख किया है। उनके विवरण की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं :--- ___ 'जम्बूद्वीप - भारतवर्ष के कुरु-जाङ्गल जनपद में शंखावती नामक प्राचीन नगरी थी । एक समय पार्श्वनाथ छमावस्था में विहार करते हुए यहां आये और नगर के बाहर कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानावस्थित हो गये । उसी समय उनके पूर्वभव के वैरी कमठ ने उन्हें देखा और पूर्व वैरवश उसने उनके ऊपर उपसर्ग करना प्रारम्भ किया और अपनी वैक्रिय शक्ति से बादलों को प्रकट कर घनघोर वष्टि प्रारम्भ कर दी। वर्षा का जल चारों ओर फैल गया और पार्श्वनाथ की नासिका तक पहुंच गया तो धरणेन्द्र, जिसकी उन्होंने पूर्व भव में रक्षा की थी, वहां आया और अपने फणों को उनके ऊपर छत्र रूप में फैलाकर रक्षा की। उसी समय से इस नगरी का नाम अहिच्छत्रा पड़ा। पार्श्वस्वामी के वहां से अन्यत्र विहार करने के पश्चात् संघ ने उसी स्थान पर उनका चैत्य बनवाया। बाद में दो अन्य चैत्य भी वहीं पर बनवाये गये, जिनमें एक पार्श्वनाथ का और दूसरा नेमिनाथ का था। यहां हिरण्यगर्भ, चण्डिकाभवन, हरिहर, ब्रह्मकुण्ड आदि लौकिक तीर्थ भी हैं। कृष्ण की जन्मभूमि भी यहीं है।" यद्यपि पार्श्वनाथ के माता-पिता के नामों की सूचना आगम ग्रन्थों से भी प्राप्त होती है, परन्तु उनकी विस्तृत जीवनी सर्वप्रथम कल्पसूत्र १. पासे ण अरहा परिसादाणीए तेसीइं राइदियाईनिच्चं वोसट्टकाए चियत्त देहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जति, तंज हा दिव्वा वा माणस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, अणु लोमा वा पडिलोमा वा, ते उप्पन्ने सम्म सहइ तितिक्खइ खमइ अहियासेइ ।। कल्पसूत्र [जयपुर संस्करण, १६७७ ई०] सूत्र १५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy