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________________ ७८ उत्तर भारत के जैन तीर्थ पर ऋषभदेव के विहार करने,' निर्वाण प्राप्त करने एवं वहां उनके पुत्र भरत द्वारा चैत्यों के निर्माण कराने का ग्रन्थकार ने जो उल्लेख किया है उसका भी विवरण प्राचीन जैन साहित्य में प्राप्त होता है । जिनप्रभ ने नवाङ्गीवत्तिकार अभयदेवसूरि की शाखा के देवेन्द्रसूरि द्वारा अपने मन्त्रविद्या से अयोध्या नगरी से ४ प्रतिमाओं को सेरिसय पुर ले जाने का उल्लेख किया है। यही बात कक्कसूरि द्वारा रचित नाभिनंदनजिनोद्धारप्रबन्ध ( रचनाकाल वि० सं० १३९३ ) में १. तित्थयराणं पढमो उसभरिसी विहरिओ निरुवसग्गो। अट्ठावओ णगवरो, अग्ग(य)भूमी जिणवरस्स ।। आवश्यकनियुक्ति-३३८ तेणं समएणं भगवं अट्ठावयमागतो विहरमाणो, .......। __ आवश्यकचूर्णी, पूर्व भाग, पृ० २०९ २. अट्ठावयंमि सेले, चउदसभत्तेण सो महरिसीणं । दसहि सहस्सेहि, समं निव्वाणमणुत्तरं पत्तो । आवश्यकनियुक्ति, ४३५ ३. आवश्यकचूर्णी, पूर्व भाग, पृ० २२३ । ४. सेरिसयपुर जैनों का प्रसिद्ध तीर्थ है । यह आज सेरीसा के नाम से जाना जाता है । यह स्थान गुजरात राज्य के गांधीनगर जिले में अगलज नामक स्थान से १३ किलोमीटर दूर स्थित है। परीख और शास्त्री-गुजरातनो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास खंड १, पृ० ३७५ संघप्रयाणकेष्वेवं, दीयमानेष्वहनिशम् । श्रीसेरीसाह्वयस्थान प्राप देसलसंधपः ॥ श्रीवामेयजिनस्तस्मिन्नध्यप्रतिमया स्थितः । धरणेन्द्राशसंस्थांहिः (?) सकलो यः कलावपि ॥ यः पुरा सूत्रधारेण पट्टाच्छादितचक्ष षा। एकस्यामेव शर्वर्या देवादेशादघट्यत ॥ श्रीनागेन्द्रगणाधीशः श्रीमद्देवेन्द्रसूरिभिः । प्रतिष्ठितो मन्त्रशक्तिसम्पन्नसकलेहितः ।। तैरेव सम्मेतगिरेविंशतिस्तीर्थनायकाः । आनिन्यिरे मन्त्रशक्त्या, त्रयः कान्तीपुरीस्थिताः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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