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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन ७७ ५ तीर्थङ्करों का इस नगरी में जन्म हुआ।' ग्रन्थकार ने भी इसी तथ्या का उल्लेख किया है। अचलभ्राता महावीर स्वामी के ११ गणधरों में से एक थे। उनका जन्म इसी नगरी में हुआ था। इनके पिता का नाम वसु और माता का नाम नन्दा था। इन्हें अच्छे-बुरे कर्मों के अस्तित्त्व में विश्वास न था। महावीर स्वामी ने इनके भ्रम को दूर किया जिससे प्रभावित होकर इन्होंने अपने ३०० शिष्यों के साथ उनसे दीक्षा ले ली।३ जिनप्रभसूरि ने भी 'महावीरगणधरकल्प' के अन्तर्गत इनके सम्बन्ध में सविस्तार चर्चा की है। ___ जिनप्रभसूरि ने रघुवंशीय दशरथ, राम और भरत को यहां का . राजा बतलाया है। यह उल्लेख जैन और ब्राह्मणीय" परम्परा के ग्रन्थों में भी पायी जाती है । उन्होंने इस नगरी की भौगोलिक स्थिति और विस्तार के बारे में जिस खगोलशास्त्रीय मान्यता का उल्लेख किया है वह भी जैन परम्परा पर ही आधारित है।६ अष्टापद पर्वत १. आवश्यकनियुक्ति, सूत्र ३८२-८३ तिलोयपण्णत्ती (यतिवृषभ-६ठीं शताब्दी) ४,५२६ और आगे पद्मपुराण (रविसेण-७वीं शती) ९८/१४१-१४८ आद्यो जिनेन्द्रस्त्वजितो जिनश्च अनन्तजिच्चाप्य भिनन्दनश्च । सुरेन्द्र वन्द्यः सुमतिर्महात्मा साकेतपुर्यां किल पञ्च जाताः ।। वराङ्गचरित (रचनाकाल ७वीं शती) २७/८१ २. अयलो य कोसलाए, कोसला नाम अयोज्झा, ......। आवश्यकचूर्णी, पूर्व भाग, पृ० ३३७ ३. मेहता और चन्द्रा-पूर्वोक्त, भाग, १ पृ० ३ दिगम्बर परम्परा में भी भगवान महावीर के ११ गणधरों का उल्लेख है, विस्तार के लिये द्रष्टव्य-जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, भाग २, पृ० २१३ ४. निशीथचूर्णी, भाग १, पृ० १०४ पद्मपुराण २२/१६२; २५/२२-३६ ५. पाण्डेय, राजबली-पुराणविषयानुक्रमणिका, पृ० २५० ६. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-४१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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