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________________ २७६ उत्तर भारत के जैन तीर्थ राजाओं की राजधानी होने के कारण इसका नाम इक्ष्वाकुभूमि पड़ा होगा । जिनप्रभसूरि ने इस नगरी के विनीता नाम पड़ने के सम्बन्ध में जो बात कही है, उसका भी उल्लेख आवश्यक नियुक्ति' में प्राप्त होता है । बुद्ध और महावीर के समय अयोध्या को साकेत कहा जाता था । २ जैन साहित्य में इन दोनों को एक नगर बतलाया गया है । कुछ आधुनिक विद्वानों ने बौद्ध साहित्य के आधार पर इन्हें अलग-अलग नगर सिद्ध करने का प्रयास किया है । जैन मान्यतानुसार कुलकरों द्वारा ही सांसारिक नियमों का निर्माण किया गया है । इन कुलकरों की संख्या ७ है उनके नाम हैं - विमलवाहन, कक्खुम, जसम, अभिचंद, पसेणीय, मरुदेव और नाभि ।" जिनप्रभ ने भी यही बात कही है । जैन परम्परानुसार ऋषभ, अजित, अभिनन्दन, सुमति और अनन्त इन कुशलपुरुषयोगात् विनीता नगरी कुशलेत्युच्यते,, """ आवश्यक सूत्रवृत्ति - मलयगिरि (बम्बई, १९२८ ई०) पृ० २१४ । १. ततः इन्द्र आह साधु विनीताः पुरुषाः, आवश्यक नियुक्ति (दीपिका) पृ० ५६ २. जैन, जगदीश चन्द्र - भारत के प्राचीन जैन तीर्थ, पृ० ३९ ३. वही ४. राइजडेविड्स, टी० डब्ल्यू ० - बुद्धिस्ट इंडिया ( हिन्दी अनुवादइलाहाबाद, १९५८ ई०, पृ० ३२) ५. पढमित्थ विमलवाहण, चक्खुम जसमं चउत्थमभिचन्दे | ततो अपसेणइए, मरुदेवे चेत्र नाभी य । आश्यक नियुक्ति (दीपिका) सूत्र १५५ जैन साहित्य में ही कहीं १० और कहीं १४ कुलकरों का भी उल्लेख प्राप्त होता है । इस सम्बन्ध में विस्तार के लिये द्रष्टव्य मेहता और चन्द्रा - पूर्वोक्त, पृ० १९३ - १९४ जिनेन्द्र वर्णी - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग २, पृ० १३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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