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तीर्थों का विभाजन बौद्ध परम्परा में भी अति प्राचीन काल से ही तीर्थयात्रा को बड़ा महत्त्व दिया गया है। महापरिनिर्वाणसूत्र' के अनुसार भगवान् बुद्ध के जन्म, ज्ञानप्राप्ति, धर्मचक्रप्रवर्तन और निर्वाण इन चार घटनाओं से सम्बन्धित स्थानों को पवित्र माना गया है और इनकी यात्रा करने का निर्देश दिया गया है। इन स्थानों की श्रद्धालु बौद्धों द्वारा यात्रा करने का भी उल्लेख मिलता है। अशोक ने इन स्थानों की यात्रा की और वहां स्तूप भी बनवाये। बुद्ध के जन्मस्थान लुम्बिनी में तो उसने भूमिकर भी माफ कर दिया था, यह बात वहां से प्राप्त स्तम्भ लेख से ज्ञात होती है। चीनी यात्रियों-फाहियान, ह्वेनसांग, इत्सिन आदि तो बौद्ध तीर्थों की यात्रा हेतु ही यहां आये थे। उनके विवरणों से बौद्ध केन्द्रों की तत्कालीन स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। आज भी श्रद्धालु बौद्ध उक्त तीर्थों की यात्रा करते हैं। यह उल्लेखनीय है कि बौद्ध धर्म से सम्बन्धित प्रत्येक तीर्थ स्थानों की भौगोलिक स्थिति के सम्बन्ध में प्रायः कोई विवाद नहीं है, इससे भी यह स्पष्ट है कि बौद्धों में तीर्थ यात्रा की दीर्घकालीन और पुष्ट परम्परा थी।
ब्राह्मणीय और बौद्ध परम्परा की तरह जैन परम्परा में भी तीर्थों का बड़ा महत्त्व है। जिस प्रकार बौद्ध परम्परा में भगवान् बुद्ध से सम्बन्धित ४ स्थानों को पवित्र माना गया है, उसी प्रकार जैनों में भी तीर्थंकरों के जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण आदि से सम्बन्धित स्थानों को पवित्र माना गया है। आगम ग्रन्थों में तो इन स्थानों की कोई चर्चा नहीं मिलती, परन्तु आगमिक व्याख्याओंनियुक्ति, चर्णी, भाष्य, वत्ति एवं टीका आदि में इस सम्बन्ध में विस्तार से चर्चायें हैं। इनमें नियुक्तियां सबसे प्राचीन और भद्रबाहु द्वारा रचित मानी जाती हैं। आधुनिक विद्वानों ने इस भद्रबाहु को श्रुतकेवली भद्रबाहु से भिन्न बतलाते हुए इन्हें प्रसिद्ध ज्योतिषी वाराहमिहिर का सहोदर बतलाया है तथा इनका समय विक्रम सम्वत्
१. राहुल सांकृत्यायन-बुद्धचर्या, महापरिनिब्बानसुत्त) पृ० ५००
(सारनाथ, बनारस, १९५२ ई०) २. मेहता, मोहनलाल - जनसाहित्यकाबृहद्इतिहास, भाग ३,
प्रस्तावना, पृ० ९
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