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________________ ७८ 1 [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४ से दूर हटा अग्नि- ज्वालाओं में झोंक देने का आदेश दिया। सिंह की गुफा में प्रविष्ट हो सिंह के मुख में हाथ डालने तुल्य उन राजकुमारियों जैसा स्तुत्य साहस आर्यधरा भारत की सन्नारियों के अतिरिक्त विश्व के इतिहास में अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं होता । हि० सन् ६३ से ६६ तक निरन्तर तीन वर्ष पर्यन्त सिन्धुराज दाहिर की सैन्य शक्ति से जूझते रहने के पश्चात् मोहम्मद कासिम ने सिन्ध में भारतीय राजा के राज्य को समाप्त कर दिया और तलवार के बल पर सिन्धुवासियों को सामूहिक रूप से इस्लाम कबूल करवाया । इस सामूहिक धर्म-परिवर्तन के समय जेसा नामक सिन्धुराज दाहिर के एक पुत्र ने भी इस्लाम धर्म स्वीकार किया और शनैः शनैः उसने सिन्ध प्रदेश में अपना राज्य स्थापित कर लिया । लगभग १० वर्ष तक उसने सिन्ध के कुछ भू-भाग पर शासन किया । हि० सन् १०५ में हशाम खलीफा बना और वह हि० सन् १२५ तक ( ई० सन् ७२४ से ७४३ पर्यन्त ) खलीफा पद पर रहा । उसने हि० सन् ११० के आसपास अपने एक जुनैद नामक सेनापति को सिन्ध का हाकिम बना कर पर्याप्त संख्या में अश्वारोही सेना दे सिन्ध में भेजा । जुनैद के सिन्धु नदी पर पहुंचते ही दाहिर के पुत्र जैसा के साथ एक झील में नौका युद्ध हुआ । जेसा जिस नौका में सवार हो अरब से प्राये नवागन्तुक हाकिम जुनैद से युद्ध कर रहा था, उस समय उसकी नौका डूब गई । जुनैद ने जेसा को बन्दी बना कुछ ही समय पश्चात् मार डाला । अपनी राह के कण्टक जेसा को मार कर जुनैदा ने सिन्ध में अरबों के शासन को सुदृढ़ एवं सुगठित बनाने का अभियान प्रारम्भ किया और थोड़े ही समय में उसने अपने कार्य में सफलता प्राप्त कर ली । इससे उत्साहित हो जुनैद ने ई० सन् ७३४ में शस्त्रास्त्रों से लैस एक शक्तिशाली सेना ले भारत के दक्षिणापथ पर अरबों की विजय - वैजयन्ती फहराने की महत्वाकांक्षा के साथ कच्छ की राह से आगे बढ़ना प्रारम्भ किया । कच्छ, सौराष्ट्र, चापोत्कट, मौर्य आदि छोटे-छोटे राज्यों को नष्ट कर जुनैद ने नवसारी गुजरात पर आक्रमण किया ।" २ जैसा कि पहले बताया जा चुका है, चालुक्यराज विक्रमादित्य द्वितीय के प्रतिनिधि गुजरात के राज्यपाल पुलकेशिन् ने राष्ट्रकूट वंशीय राजा दन्तिदुर्ग की सहायता से अरब सेना का भीषण संहार कर उसे युद्ध में बुरी तरह पराजित किया । इस युद्ध में हुई अपनी सैन्य शक्ति और जन-धन की अपूरणीय क्षति हतोत्साहित हो सिन्ध का हाकिम जुनैद अपनी अवशिष्ट सेना के साथ रणांगण छोड़ बड़ी द्रुतगति से पलायन करता हुआ पुनः अपने राज्य सिन्ध में जा घुसा । अपने प्रतिनिधि गुजरात के राज्यपाल पुलकेशिन् द्वारा प्रदर्शित उत्कट साहस १. लाट के सोलंकी सामन्त पुलकेशिन का कल्चुरी सं० ४६०, ई० सन् ७४० का दान-पत्र | जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भाग ३, पृ० ६२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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