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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ सहारे अरब सेना ने सिन्ध राज्य पर विजय प्राप्त की। इस प्रकार इस्लाम के उद्भव के लगभग १०८ वर्ष पश्चात् हिजरी सन् ८६ में लगातार तीन वर्ष तक भीषण युद्धों में निरत रहने के पश्चात् भारत के पश्चिम पार्श्वस्थ सिन्ध पर मुसलमानों के आधिपत्य की आधार-शिला स्थापित हो गई और हिजरी सन् ११० के आस-पास सिन्ध में जुनैद की हाकिम के पद पर नियुक्ति के साथ ही सिन्ध प्रदेश दमिश्क के खलीफाओं द्वारा संचालित मुस्लिम राज्य बन गया।'
दाहिर के गढ़ और राजमहल की लूट के समय कासिम ने दाहिर की अनुपम रूपसी दो राजकन्याओं-स्वरूप देवी एवं परिमल देवी को बन्दी बना हज्जाज के माध्यम से खलीफा वलीद के पास भेंट स्वरूप भेजा। उन दोनों राजकुमारियों ने भी अपनी वीरांगना माता के पदचिन्हों पर चलते हुए जौहर की ज्वालाओं में जलने की अपेक्षा शत्रु से इन्तकाम (बदला) लेने का मन ही मन दृढ़संकल्प कर लिया था । फिरिश्ता के उल्लेखानुसार हिजरी सन् ६६, तदनुसार ई० सन् ७१५ तथा वि० सं० ७७२ में जब वे दोनों राजकुमारियां उम्मियादवंशी खलीफों की राजधानी दमिश्क में खलीफा के समक्ष उपस्थित की गई तो वह उनके अदृष्टपूर्व अनुपम अलौकिक सौन्दर्य पर विमुग्ध एवं काम-विह्वल हो उनसे कामभिक्षा की याचना करने लगा। अपनी कनकलता सी देहयष्टियों को लज्जांतिरेक से समेटते-सकुचाते एवं लम्बे-लम्बे दीर्घ निःश्वास छोड़ते हुए अपने कृत्रिम आन्तरिक उद्गारों को अकृत्रिम सहज मुद्रा में अभिव्यक्त करते हुए उन दोनों सिन्धराजदुलारियों ने शिकवा-शिकायत भरे रुपांसे स्वर में खलीफा वलीद से प्रार्थना की"अय ! खुदाबन्द के नुमायन्दे नेकवक्त खलीफा ! हम दोनों को आपकी पाक सेज पर कदम रखने के लायक नहीं रखा गया है। आपके सेनापति कासिम ने हमारे कौमार्य को नष्ट-भ्रष्ट एवं कलुषित कर दिया है।"
उन दोनों सहोदरा राजकन्याओं की बात सुनते ही खलीफा क्रोधातिरेक से तिलमिला उठा । प्रकुप्त-प्रक्रुद्ध मुद्रा में अपने करतलों को परस्पर रगड़ते एवं दांतों को पीसते हुए खलीफा वलीद ने आज्ञापत्र लिखवाया कि इस आदेश को पढ़ते ही तत्काल मुहम्मद कासिम को जीवित दशा में ही बैल के ताजा गीले चमड़े में सिलवाकर शीघ्रातिशीघ्र हमारे (खलीफा वलीद के) समक्ष पहुंचाया जाय । खलीफा के उक्त आदेश के पहुंचते ही उसकी तत्काल अक्षरश: अनुपालना की गई
और यथाशीघ्र बैल के चमड़े में सिले मुहम्मद कासिम को खलीफा के समक्ष प्रस्तुत किया गया । गीले चमड़े के शनैः-शनैः सूखने सिकुड़ने के परिणामस्वरूप निरन्तर तीन दिनों तक दुस्सह्य, दारुण नारकीय वेदना से छटपटाते हुए कासिम के प्राण पखेरू मार्ग में ही देहपिंजरे से उड़ चुके थे। खलीफा ने सिन्धुराज की परमसुन्दर उन दोनों राजकन्याओं को अपने पास बुलाकर उनके समक्ष ही बैल के चमड़े में
१. इलियट, हिस्ट्री आफ इण्डिया, जि० १, पृष्ठ ४४१ ।।
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