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भारत पर मुस्लिम राज्य ]
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अवशिष्ट राजपूत सेना को साथ लिये शत्रुओं की सेना पर खड्ग प्रहार करती हुई टूट पड़ी। अनेक आततायियों को यमधाम पहुँचाने के अनन्तर क्षात्रधर्म का अक्षरश: पालन करते हुए आनखशिख असिधाराओं के प्रहारों से क्षतविक्षत हुई उस शौर्यशालिनी क्षत्राणी ने रणांगण में ही सही अर्थों में सतीधर्म की अनुपालनापूर्वक पतिलोक को प्रयाण किया ।' आततायियों से मातृभूमि की रक्षा हेतु रणांगण में बलिदान होने वाली उस शूरमा क्षत्राणी की उत्कट शौर्य से अोतप्रोत गौरवगाथाएं इतिहास के पृष्ठों पर सदा-सदा स्वर्णाक्षरों में लिखी जाती रहेंगी।
मातृभूमि की रक्षा हेतु आततायी अरबों को मौत के घाट उतारते हुए सिन्धुराज दाहिर, उसकी महारानी और शत्रुसंहारक सहस्रों शूरमाओं के वीर गति को प्राप्त हो जाने के अनन्तर अरब सेना ने गढ़ में प्रवेश किया। दुर्गरक्षक ६००० राजपूत योद्धाओं ने अपने अन्तिम श्वास तक पग-पग पर प्रतिरोधपुरस्सर शत्रुओं का संहार करते हुए मातृभूमि की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दी। फिरिश्ता ने कहीं इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया है कि भारत पर किये गये इस आक्रमण में अरब सेना के कितने सैनिक मारे गये। किन्तु कासिम द्वारा देवल पर आक्रमण किये जाने और उस पर विजय के अनन्तर जब दाहिर का बड़ा पुत्र हरिराय एक सशक्त सेना लिए युद्ध हेतु उसके समक्ष उपस्थित हुआ, उस समय युद्ध की सामग्री के समाप्त हो जाने और अपने सैनिकों के हताश हो जाने के कारण अरब सेनापति कासिम अपनी सेना को सुदृढ़ मोर्चे बनाने और उनमें ही डटे रहने का आदेश दे कर युद्ध को टालने का प्रयास करता रहा । शस्त्रास्त्रों की विपुल खेप और अश्वारोहियों की नई कुमुक के प्राप्त हो जाने पर ही उसने अपने सैनिकों को मोर्गों से बाहर निकल कर हरिराय की सेना के साथ युद्ध करने का आदेश दिया । उसे अनेक दिनों तक हरिराय के साथ अनेक बार भीषण युद्ध करने पड़े । तदनन्तर सिन्धुराज दाहिर ने एक विशाल सेना लिये अपने पुत्र हरिराय की सहायतार्थ रणांगण में उपस्थित हो अपनी दोनों सेनाओं का नेतृत्व करते हुए अरबों की सेना के साथ भीषण संहारकारी युद्ध किये । इन सब ऐतिहासिक तथ्यों के उल्लेखों से निर्विवादरूपेण यह सिद्ध हो जाता है कि अरब सेना को विपुल मात्रा में रसद एवं सैनिक कुमुकें निरन्तर प्राप्त होती रहीं और सिन्ध की सेनाओं के साथ हुए इस युद्ध में अरब सेना को अपूरणीय क्षति उठानी पड़ी। इस प्रकार की अपूरणीय सैनिक क्षति के परिणामस्वरूप ही लगभग दो दशकों तक अरब सेना ने सिन्ध से आगे राजपूताना अथवा गुजरात की धरा पर आगे बढ़ना तो दूर, पैर तक रखने का साहस नहीं किया । सिन्ध के राजवंश और शूरवीर सैनिकों ने प्राणों की बलि दे कर भी बड़ी वीरता के साथ आततायियों से मातृभूमि की रक्षा के प्रबल प्रयास में किसी प्रकार की कोर कसर नहीं रखी किन्तु जन-धन की भीषण क्षति उठाने के - उपरान्त भी नफ्थे की संज्ञा से अभिहित किये जाने वाले दाहक अग्निगोल्कों के
१. ब्रिग फिरिश्ता, जि० ४, पृ० ४०६ ।
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