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________________ ७२ 1 [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४ ब्राह्मणों को मौत के घाट उतार दिया गया । वृद्धाओं को छोड़ शेष बालक-बालिकानों एवं अबलाओं को बन्दी बना लिया गया । मन्दिर की लूट से जो प्रचुर मात्रा में धन उपलब्ध हुआ, उसका ५वां भाग, ७५ बन्दी नवोढ़ाओं के साथ हज्जाज को भेज दिया गया और शेष सब अरब सैनिकों में बांट दिया गया । तदनन्तर सेहबान आदि स्थानों को नष्ट करता हुआ कासिम अपनी सेना के साथ सिन्ध के महाराजा दाहिर की ओर बढ़ा। दाहिर का बड़ा राजकुमार हरिराय एक सशक्त सेना के साथ, बढ़ती हुई अरब सेना का मार्ग रोक कर सम्मुख • डटा । अरब सैनिक हताश हो चुके थे और उनके पास युद्ध का सामान भी समाप्तप्रायः होने आया था, अतः कासिम ने हज्जाज को नई सेना एवं शस्त्रास्त्रों की नई खेप शीघ्र ही भेजने का सन्देश भेजा और अपनी सेना को मोर्चे बनाकर उनमें डटे रहने का आदेश दिया । "नई सेना के साथ शस्त्रास्त्रों की खेप भी शीघ्र ही आने वाली है" - पुनः पुनः अपने इस आश्वासन भरे वाक्य को दोहराते हुए कासिम ने अपने सैनिकों के मनोबल को शिथिल नहीं होने दिया । अरब सेना की नई कुमुक की प्रतीक्षा में कासिम अपनी सेना को सुदृढ़ मोर्चों में ही सन्नद्ध रख कर अपने सैनिकों के उत्साह को बढ़ाने के साथ-साथ युद्ध को टालता रहा । राजकुमार हरिराय यदि अरब सेना की इस प्रकार की आन्तरिक कमजोरी का पता लगा तत्काल आक्रमण कर देता तो संभवतः स्थिति कुछ और ही होती, युद्ध का पासा ही पलट गया होता । परन्तु हरिराय को शत्रुसेना के सेनापति कासिम ने अपनी इस प्रकार की प्रान्तरिक कमजोरी का आभास तक नहीं होने दिया और हरिराय की ओर से अरब सेना पर विलम्ब हो जाना अरबों के लिए वरदान और भारत के लिये अभिशाप सिद्ध हुआ । हरिराय की ओर से आक्रमण न ' होने के कारण अरबों ने मोर्चों को दृढ़ किया । इस अवधि में कासिम को १००० अश्वारोही सेना की नई कुमुक शस्त्रास्त्रों के विपुल भण्डार के साथ प्राप्त हो गई । शस्त्रास्त्रों के सुविशाल जखीरे के साथ नई कुमुक के प्रा जाने पर अरब सेना के उत्साह का पारावार न रहा । दोनों सेनाओं के सैनिक अपने-अपने मोर्चों से आगे बढ़ कर शत्रुओं पर टूट पड़े । अनेक दिनों तक दोनों सेनाओं के बीच जम कर भीषण युद्ध हुए । दोनों ओर के सैनिकों ने अपने-अपने उत्कट शौर्य एवं ररण-कौशल का परिचय दिया किन्तु विजयश्री ने किसी का वरण नहीं किया । निर्णायक युद्ध के लिये कटिबद्ध हो सिन्ध का महाराजा दाहिर भी ब अपने ज्येष्ठ राजकुमार हरिराय की सेना से जा मिला । दाहिर की सेना में अरबेतर देशों के मुस्लिम योद्धा भी थे जिन्होंने दाहिर की शरण ग्रहरण कर ली थी । हिजरी सन् ६३ तद्नुसार ई० सन् ७१५ की तारीख १०, रमजान के दिन सैन्य संचालन की बागडोर अपने हाथों में लिये दाहिर ने अरबों पर भीषण प्राक्रमरण किया । अरब अश्वारोहियों का संहार करता हुआ दाहिर शत्रु सेना के मध्य-भाग तक जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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