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भारत पर मुस्लिम राज्य 1
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हुआ उस युद्ध के प्रारम्भ होते ही अरब सेना का सेनानायक बुदमीन अपने बहुत से सैनिकों के साथ रणांगण में मार डाला गया । इस प्रकार जो अरब सेना अपने तूफानी आक्रमणों से सीरिया, फिलिस्तीन, मिस्र, ईरान, समरकन्द, फरगाना, तासकन्द, खोकन्द आदि पर अपनी विजय वैजयन्ती फहराती हुई पूर्वी तुर्किस्तान में तूफान और चीन तक एक प्रचण्ड प्रांधी की भांति प्रानन-फानन में ही बढ़ चुकी थी, उसी अरब सेना के एक अंग को आर्यधरा पर दूसरी बार ( पहली बार हि० सन् २१-२२ में और दूसरी बार हि० सन् ८६ में) पराजय का मुख देखना पड़ा |
तदनन्तर हज्जाज ने हि० सन् ६३, तद्नुसार वि० सं० ७६८ एवं ई० सन् ७११ में अपने चचेरे भाई एवं दामाद इमामुद्दीन मोहम्मद बिन कासिम को ६००० असीरियन अश्वारोहियों की सशक्त सेना, आधुनिक "नैपाम बम" की किस्म के अग्नि प्रज्ज्वलित कर देने वाले नफ्ते आदि के विशाल जखीरे के साथ, देकर ब्राह्मणों के नगर देवल (सिंध) पर आक्रमण करने का आदेश दिया । इमामुद्दीन मोहम्मद बिन कासिम के सेनापतित्व में अरब सेना ने नगर पर घेरा डालने के उद्देश्य से देवल की ओर कूच किया । मार्ग में नगर से पहले एक प्रति विशाल मन्दिर था, जिसके चारों ओर प्रति सुदृढ़ एवं दुर्भेद्य दीवार का परकोटा बना हुआ था । मन्दिर के गगनचुम्बी शिखर पर अत्युच्च ध्वजदण्ड से लगी हुई ध्वजा नील गगन में लहर-लहर लहराती हुई मानो, भव्य भक्तों को मन्दिर की ओर आमन्त्रित कर रही थी । देवल के ब्राह्मणों की यह दृढ़ आस्था थी कि उस ध्वजदण्ड में अद्भुत चमत्कारपूर्ण दैवी शक्ति है । अरब सेना के सेनापति कासिम ने मर्कटी यन्त्र सन्नद्ध करवा यन्त्र - चालकों को उस ध्वजदण्ड पर भारी भरकम प्रस्तर खण्डों से प्रहार करने का आदेश दिया । शिलोपम विशाल पाषाण खण्डों के दो सधे प्रहारों के उपरान्त भी उस ध्वजदण्ड पर लगी पताका पूर्ववत् नभोमण्डल में फहराती ही रही । किन्तु तीसरी बार के प्रस्तुर प्रहार से वह ध्वजदण्ड टूटकर ध्वजा के साथ भूलु ठित हो गया । यह देखकर वहां के निवासियों के अन्धविश्वास के साथ ही उनकी जीवन प्राशा भी तिरोहित हो गई । अरबों की प्रबल सैन्य शक्ति के समक्ष अपनी सैन्य शक्ति को अपर्याप्त समझ कर मन्दिर एवं नगर की रक्षार्थ नियत सिन्ध के राजा दाहिर का छोटा पुत्र फौजी ब्राह्मणाबाद की ओर अपनी सेना के साथ भाग गया। प्राचीर और मन्दिर को भूमिसात् कर कासिम ने अपनी सेना को कत्लेआम ( सामूहिक संहार ) और लूट के आदेश दिये । १७ वर्ष से ऊपर की आयु के सभी
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३.
राजपूताने का इतिहास, खण्ड १, ( प्रोभा), पृष्ठ २५०
वही, पृष्ठ २५० पर सेनापति मुगैरा और पृष्ठ २५१ अरब सेनापति बुदमीन की सिन्धी सेना के हाथों पराजय और मृत्यु का विवरण ।
नफ्था तैयार करने का प्रज्ज्वलनशील द्रव पदार्थ, उस समय केवल अरब में ही उपलब्ध था । इसका प्रयोग सम्भवतः तब तक केवल अरबों तक ही सीमित था ।
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