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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
थे, जिनमें कतिपय मुसलमान परिवार कर्बला की यात्रार्थ जा रहे थे। तत्कालीन सिन्ध राज्य में अवस्थित देवल नामक स्थान में पहुंचने पर वहां (ठट्टे) के राजा (सामन्त) की आज्ञा से उस माल से भरे लंका के जहाज को लूट लिया गया और सात जहाजों में सवार मुस्लिम यात्रियों को हिरासत में ले लिया गया। उन कैदियों में से कतिपय यात्री येन-केन-प्रकारेण कैद से निकल कर अरब एवं ईरान के प्रशासक हज्जाज के पास फरियाद ले गये । हज्जाज अपने समय का एक बड़ा ही बहादुर सेनापति था, जिसे उम्मियाद वंश के पांचवें खलीफा अब्दुल मलिक ने अरब और ईरान का शासक नियुक्त किया था। हज्जाज के लिये कहा जाता है कि वह एक ऐसा निर्दयी प्रकृति का शासक था कि उसने अपने जीवनकाल में १,२०,००० आदमियों को मौत के घाट उतरवा दिया और उसकी मृत्यु के समय ५०,००० आदमी उसकी हिरासत में थे।'
जहाज के लूट लिये जाने एवं कर्बला के यात्रियों को कैद कर लिये जाने के समाचार सुन कर हज्जाज ने जो कार्यवाही की इस पर राय बहादुर गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने इलियट, फिरिश्ता आदि लब्धप्रतिष्ठ इतिहासविदों के ग्रन्थों के निदिध्यासन एवं पुरातात्विक ऐतिहासिक महत्व के अवशेषों के आधार पर गहन शोध के अनन्तर अपनी ऐतिहासिक कृति “राजपूताने का इतिहास (पहला खण्ड)" में विशद प्रकाश डाला है, जिसका सारांश इस प्रकार है :
____ "हज्जाज ने सिंध के महाराजा चच के पुत्र दाहिर को पत्र लिखकर निवेदन किया कि उनके वशवर्ती ठट्टे के राजा ने खलीफा को भेंट की जाने वाली वस्तुओं से भरे जहाज को लूटा है और कर्बला के यात्रियों से भरे सात जहाजों को अपने अधिकार में लिया है, वे सातों जहाज पूरे माल-असबाब और यात्रियों सहित हमें भेजने के लिए अपने सामन्त को आप मजबूर करें। हज्जाज ने वह पत्र मकरान के हाकिम हारू के माध्यम से दाहिर के पास पहुंचाया। अपने पत्र का दाहिर की ओर से जो उत्तर हज्जाज को प्राप्त हुआ उससे उसे संतोष नहीं हुआ । उसने माल, जहाज तथा यात्रियों को ठट्टे के राजा से प्राप्त करने और भारत में इस्लाम के प्रचार हेतु खलीफा वलीद से भारत पर आक्रमण करने की आज्ञा प्राप्त कर बुदमीन नामक एक सेनानी को ३०० घुड़सवारों के साथ ठट्टे की ओर तत्काल प्रस्थित होने का आदेश दिया। इस आदेश के साथ ही हज्जाज ने मकरान के हाकिम हारू को भी लिखा कि वह देवल पर आक्रमण हेतु बुदमीन की सहायता के लिये एक सहस्र अश्वारोहियों की सेना देवल की ओर भेजे । बुदमीन ने १३०० घुड़सवारों की सेना के साथ देवल की ओर प्रयाण किया किन्तु ठट्टे के राजा की सेना ने उसे देवल की ओर बढ़ने से रोक दिया। दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध
१. राजपूताने का इतिहास, खं० १ अोझा, पृष्ठ २५१ २. ब्रिग, फिरिश्ता, जिल्द ४, पृष्ठ ४०३
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