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भारत पर मुस्लिम राज्य ]
रूप धारण कर लिया। खारिजिन लोगों के साथ अली का युद्ध हुआ और उसमें वह पराजित हुआ । अन्ततोगत्वा हि० सन् ४०-ई० सन् ६६१ में अली मारा गया । उसकी मृत्यु के अनन्तर बहुत से मुसलमानों ने अली के मत को अंगीकार किया और वे शिया मुसलमान के नाम से प्रसिद्ध हुए। ईरान के मुसलमान और भारत के दाऊदी बोहरे अली के शिया मत के अनुयायी हैं।'
___ खलीफा उमर के जीवनकाल में अरब के सेनापति मुगैरा के नेतृत्व में भडौंच पर आक्रमण करने के लक्ष्य से बढ़ती हई अरब सेना को सिन्ध के राजा चच द्वारा देवल के पास हुए युद्ध में जो मुँह की खानी पड़ी थी और उस युद्ध में अरब सेना का सेनापति मुगैरा सिन्ध के राजा चच के सैनिकों के हाथों मार दिया गया था, उसी के कारण अरब सेनाओं ने हिजरी सन् ६२ तक अर्थात् मुहम्मद सा० को स्वर्गस्थ हुए ८१ वर्ष व्यतीत हो जाने तक भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया । इस प्रकार भारत हिजरी सन् ६२ तक अरबों के आक्रमण से एक प्रकार से एकदम अछूता सा रहा ।
हिजरी सन् ८६ में खलीफा वलीद खिलाफत की गद्दी पर आसीन हुआ और हिजरी सन् १६ तक वह सत्ता में रहा । वलीद ने खलीफा बनते ही अपने सेनापति हारू को मकरान पर आक्रमण करने का आदेश दिया। सेनापति हारू ने मकरान पर हि० सन् ८७ में विजय प्राप्त कर बहुत से बिलोचों को मुसलमान बनाया और इस प्रकार वि० सं० ७६३ में मुसलमान भारत के नितान्त निकट आ पहुंचे।
खलीफा वलीद के गद्दी पर आसीन होने के लगभग तीन-चार वर्ष पश्चात् अनुमानतः हि० सन् ६० के आस-पास एक ऐसी घटना घटित हुई, जिससे भारत के साथ अरब के संघर्ष का सूत्रपात हुआ । जैसा कि पहले बताया जा चुका है सरंद्वीप (सिंहल अथवा लंका) के व्यापारी पूर्वकाल में अफ्रीका के लाल सागर (Red Sea) के तट पर तथा ईरान की घाटी के तब्वर्ती प्रदेशों में समुद्री मार्ग से अपने जहाजों द्वारा माल लाया ले जाया करते थे। मुहम्मद साहब द्वारा इस्लाम प्रचार प्रारम्भ किये जाने के पश्चात् लंका के व्यापारी जब अरब के मुसलमानों के सम्पर्क में आये तो लंका के उन व्यापारियों में से बहुत से व्यापारी इस्लाम के अनुयायी हो गये और इस प्रकार उनका अरब आना जाना एवं वहां के लोगों (मुसलमानों) के साथ उन व्यापारियों का संपर्क बढ़ता ही गया। एक बार सरंद्वीप के राजा ने अपने देश की बहुमूल्य वस्तुओं से लदा एक जहाज खलीफा वलीद को भेंट स्वरूप सरंद्वीप से बगदाद की ओर भेजा । माल से भरे उस जहाज के साथ और भी अन्य ७ जहाज
१. राजपूताने का इतिहास, पहला खण्ड, अोझा, पृष्ठ २५०
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