________________
६८ ]
[
जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
के आदमियों को मैं मौत के घाट उतार दूंगा। खलीफा के इस आदेश के प्राप्त होते ही उस्मान ने अरब सेना को तत्काल उमान वापिस बुला लिया।
। उसी अवधि में उस्मान के भाई ने भडौंच पर आक्रमण करने के लिये अरब सेना भेजी किन्तु चचनामे के उल्लेखानुसार सिन्ध प्रदेश के राजा चच (सिन्ध के इतिहास-प्रसिद्ध राजा दाहिर के पिता) ने देवल के पास अरबों की सेना को युद्ध में परास्त कर अरब सेना के सेनापति मुगैरा-अबुल-आशी को मार डाला ।
खलीफा उमर ने बसरा (ईराक) के हाकिम अबू-मूसा-प्रशाकी को सिन्ध की राजनैतिक एवं सैनिक स्थिति का विवरण लिख भेजने का आदेश दिया। अपने एक अफसर को मकरान एवं किरमान भेज कर सिन्ध की स्थिति के सम्बन्ध में जानकारी कर लेने के पश्चात् बसरा के हाकिम ने खलीफा को लिखा कि सिन्ध का राजा शक्तिशाली धर्मनिष्ठ और मन का मैला है। यह पढ़कर खलीफा ने अबू-मूसा को आदेश भेजा कि सिन्ध के राजा के साथ जिहाद (धर्मयुद्ध) नहीं करना चाहिये । हि० सन् २२ में अब्दुल्ला-बिन-ग्रामर ने किरमानं और सिजिस्तान पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् सिन्ध में भी सेना भेजना चाहा किन्तु खलीफा उमर ने अनुमति प्रदान नहीं की।
हिजरी सन् २३ में खलीफा उमर-बिन-खत्ताब का देहावसान हो जाने पर हसर खलीफा हुआ। वह केवल ६ मास तक ही खलीफा पद पर रह सका । उस्मान के सेनापति मुआविया ने उससे खलीफा की गद्दी छीन ली और वह स्वयं खलीफा बन बैठा । इस प्रकार मुहम्मद सा० के बहिस्तगमन के २३ वर्ष पश्चात् ही खिलाफत की गद्दी के लिये परस्पर लड़ाई-झगड़े प्रारम्भ हो गये। मजहबी जुनून का स्थान सांसारिक ऐश्वर्य ने ले लिया और पद, प्रतिष्ठा एवं सत्ता हथियाने की लालसा इस्लाम के सुदृढ़ संगठन में उत्तरोत्तर बढ़ने लगी। खलीफा मुआविया उम्मियाद वंश का था अतः वह और उसके उत्तराधिकारी अथवा उत्तरवर्ती १३ खलीफे उम्मियादवंशी कहलाये । उम्मियादवंशी खलीफाओं की राजधानी दमिश्क रही।
खलीफों की मूल शाखा में हसन के पश्चात् हि० सन् २४ में उस्मान खलीफा बना, जो हि० सन् ३५ पर्यन्त ११ वर्ष तक खलीफा रहा । उस्मान के पश्चात् हि० सन् ३५ से ४० तक अली खलीफा पद पर रहा । खिलाफत के तख्त पर ज्योंही अली बैठा, त्योंही लोग उसकी यह कहकर मुखालफत करने लगे कि वह खिलाफत की गद्दी का असली हकदार नहीं है । इस पारस्परिक कलह ने उग्र होते-होते लड़ाई का १. इलियट, हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, जिल्द १ पृष्ठ ४१५-१६ २. , , वही , पृष्ठ ४१६ ३. इलियट, हिस्ट्री प्राफ इण्डिया, जि० १, पृ० ४१७ ४. राजपूताने का इतिहास, पहला खण्ड, प्रोझा, पृष्ठ २४६ का टिप्पण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org