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भारत पर मुस्लिम राज्य ]
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क्रमागत मिस्र के राजाश्रों द्वारा पीढ़ी - प्रपीढ़ियों से चुन-चुन कर एकत्रित की गई लाखों अलभ्य पुस्तकों का सुविशाल संग्रह था, जला देने का निश्चय किया । “नासिखुत्तवारिख” के उल्लेखानुसार अलेग्जेन्ड्रिया के अपने समय के उच्च कोटि के विद्वान् याहिया ने विजेता सेनापति अम्र को प्रार्थना की कि वह उस अलभ्य अनमोल पुस्तकालय को यथावत् सुरक्षित रहने दे । याहिया की प्रार्थना पर आक्रांता सेनाओं के सेनापति अम्र - इब्न- उल - श्रास ने खलीफा उमर को इस विषय में आदेश भेजने के लिये लिखा । खलीफा उमर ने उत्तर में अपने सेनापति को लिखा कि यदि उन सब पुस्तकों में जो कुछ लिखा है, वह कुरआन के अनुसार ही है तो अनेक भाषाओं की इन अगणित पुस्तकों की हमें कोई आवश्यकता नहीं । उस दशा में हमारे लिये केवल एकमात्र कुरान ही पर्याप्त है । इसके विपरीत यदि इन पुस्तकों का प्राशय कुरान के विपरीत है, तो यह तो एक बहुत ही बुरी बात है । अतः इन सब पुस्तकों को जलाकर खाख कर दो ।"
खलीफा की इस प्रकार की आज्ञा के प्राप्त होते ही सेनापति अम्र ने लाखों पुस्तकों के सुविशाल भण्डार अलेग्जेन्ड्रिया के उस पुस्तकालय की सब पुस्तकें वहां के अपने सैनिक शिविरों के हम्मामों में पानी गरम करने के लिये ईंधन के रूप में जलाने का आदेश दिया । उन पुस्तकों को लगातार ६ महीनों तक ईंधन की जगह जला - जला कर अरब सेनाओं के शिविरों के हम्मामों में पानी गरम किया जाता रहा, इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अलेग्जेन्ड्रिया का वह पुस्तक भण्डार कितना विशाल था । इस प्रकार मिस्र के प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण साहित्य के विपुल भण्डार को भस्मीभूत कर मिस्र की प्राचीन संस्कृति को संसार के प्रांगरण से सदा के लिए समाप्त कर दिया गया ।
सीरिया, फिलिस्तीन, मिस्र और ईरान में अरब सेनाओं की उत्साहवर्द्धक आशातीत सफलताओं के परिणामस्वरूप अरबवासियों की लिप्सापूर्ण दृष्टि, खलीफा उमर के जीवनकाल ( हिजरी सन् १३ से २३ के बीच के समय ) में ही भारत की ओर उठ चुकी थी किन्तु खलीफाओं ने हिजरी सन् ६३ से पहले अपने सेनापतियों को भारत पर आक्रमण करने की आज्ञा प्रदान नहीं की ।
खलीफा उमर-बिन- खत्ताब के सत्ताकाल में अरब सेना समुद्री मार्ग से बम्बई के पास थाने तक पहुंच गई थी । वह सेना उमान के हाकिम उस्मानबिन-आशी ने खलीफा की आज्ञा प्राप्त किये बिना ही भेजी थी अतः खलीफा उमर ने उसे तत्काल वापिस बुला लिया और उस्मान को प्रदेश लिख भेजा कि हिन्दुस्तानियों के साथ युद्ध में जितने अरब सैनिक मारे जायेंगे, उतने ही तेरी कौम
१.
राजपूताने का इतिहास, पहला खण्ड, पं० गौरीशंकर हीराचन्द श्रोभा, पृष्ठ २४६ ।
वही
पृष्ठ २४६ ।
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