SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ उनके जितने भी उत्तर।।।रो हुए वे सभी खलीफा के नाम से अभिहित किये जाने लगे। अबूबक्र सिद्दीकी हि० सन् ११ से १३ तक लगभग दो वर्ष तक खलीफा रहा। अबूबक्र के पश्चात् दूसरा खलीफा खत्ताब का पुत्र उमर हुआ जो हि० सन् १३ से २३ तक १० वर्ष पर्यन्त खलीफा रहा । उमर बिन खत्ताब नामक दूसरे खलीफा ने सत्ता में आते ही सीरिया, फिलिस्तीन, मिस्र और ईरान आदि देशों में भी सैनिक बल के माध्यम से इस्लाम का प्रसार करना प्रारम्भ किया। इस्लाम के अनुयायी प्रत्येक सैनिक एवं जन-जन के मन में इस प्रकार की भावना लूंस-ठूस कर भर दी गई थी कि जितने अधिक विर्मियों को इस्लाम कुबूल करवाया जाय और इस्लाम को कबूल न करने वाले काफिरों अर्थात् विधर्मियों को जितनी अधिक संख्या में मौत के घाट उतारा जाय, उतना ही अधिक सबाब अर्थात् पुण्य प्राप्त होता है। इस प्रकार की भावना से अभिभूत-प्रोतप्रोत खलीफा उमर की सेनाओं ने बड़ी द्रुत गति से तलवार के बल पर सीरिया आदि देशों में इस्लाम का प्रसार करना प्रारम्भ किया। इस्लाम की सेनाएं जिस देश पर आक्रमण करतीं, वहां के आबालवृद्ध निवासियों को सामूहिक रूप से तलवार के बल पर बलात मुसलमान बनातीं और जो लोग अपना धर्म छोड़ना स्वीकार नहीं करते, उन्हें सामूहिक रूप से मौत के घाट उतार देतीं। मृत्यु के भय से भयभीत हो आक्रान्त देशों के निवासी तत्काल सामूहिक रूप से इस्लाम को कुबूल कर लेते । इस प्रकार द्वितीय खलीफा उमर बिन खत्ताब के खलीफा पद पर आरूढ़ होने के सातवें वर्ष अर्थात् पैगम्बर मुहम्मद सा० के बहिश्तगमन के. २०वें वर्ष के समाप्त होते-होते सीरिया, फिलिस्तीन, मिस्र और ईरान ये चारों देश समग्र रूप से इस्लाम के अनुयायी इस्लामी देश हो गये। ईरान की ओर बढ़ती इस्लामी सेनाओं के आक्रमण की बात सुनते ही तत्कालीन जरस्थुस धर्म के अनुयायी ईरान के अनेक कुटुम्बों ने अपने धर्म की रक्षा हेतु समुद्री मार्ग से भारत की ओर पलायन किया। उन्होंने भारत की शरण ले अपने धर्म की रक्षा की। उनके वंशज पारसी कहलाये, जो सब धर्मों को समान अधिकार देने वाले भारत में आज भी सम्पन्न, सुखी, सुरक्षित, अपने जरस्थुस धर्म को मानने वाले भारतीय नागरिक हैं । खलीफा उमर बिन खत्ताब के आदेश से उसके सेनापतियों ने अपनी सेनाओं के साथ जिन-जिन देशों पर आक्रमण किये उन-उन देशों की प्राचीन संस्कृतियों का विशेषतः संसार की अति प्राचीन एवं सुसम्पन्न मिस्र-संस्कृति का कोई अवशेष तक अवशिष्ट नहीं रखा। उन्होंने उन देशों के निवासियों का न केवल बलात् धर्मपरिवर्तन ही किया अपितु वहां के धर्म-स्थानों, मन्दिरों, मूर्तियों, महलों एवं समृद्ध साहित्यिक निधियों-विशालतम पुस्तक भण्डारों को भी धूलिसात् एवं भस्मीभूत कर डाला । खलीफा उमर के सेनापति-अम्र-इन्न-उल-पास ने हि० सन् १६ तद्नुसार वि० सं० ६६७, ई० सन् ६४० में मिस्र पर विजय प्राप्त कर मिस्र के प्रसिद्ध नगर अलेग्जेन्ड्रिया के सुविशाल पुस्तक भण्डार को, जिसमें शताब्दियों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy