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________________ भारत पर मुस्लिम राज्य } [ ६५ तथा धर्म की एकता के पथ में अवरोध उत्पन्न करने वाले अपने देशवासी बन्धुत्रों से भी अनेक बार लड़ाइयां लड़नी पड़ीं। मुहम्मद साहब द्वारा अपने देश, देशवासियों और पद-दलित मानवता के उद्धार, अभ्युदय, उत्थान एवं उत्कर्ष तथा समानता की आधार शिला पर जिस नव्य भव्य समाज की संरचना के उद्देश्य से जो क्रान्तिकारी अभियान प्रारम्भ किया गया था, उस अभियान को असफल करने के लिये स्वार्थी तत्वों ने जो भांति-भांति के अवरोध - विरोध उपस्थित किये, उन विरोधावरोधों का अन्त करने के लिए उन्हें "भय बिन प्रीत न होय" इस नीति वाक्य को अमल में लाना पड़ा । प्रबल जनमत मुहम्मद साहब के साथ था । उनके सुसंगठित एवं अनुशासित अनुयायी उनके प्रत्येक आदेश को ईश्वरीय आज्ञा समझ कर उसकी अनुपालना के लिये प्राण-पण से कटिबद्ध थे। अतः मुहम्मद साहब ने तलवार के बल पर इस्लाम का प्रचार-प्रसार करना प्रारम्भ किया । विरोधी प्रारण भय से भयभीत हो उठे । तलवार की तीक्ष्ण धार ने विरोध को तिरोहित कर दिया। चारों ओर सामूहिक धर्म परिवर्तन का दौर प्रारम्भ हुआ और मुहम्मद साहब के जीवन काल में ही अरब देश के बहुत बड़े भाग में इस्लाम का एकच्छत्र वर्चस्व स्थापित हो गया और वे विपुल धनसम्पदा एवं ऐश्वर्य के स्वामी बन गये ।' सम्पूर्ण देश का, समग्र अरबवासियों का एक ही ईश्वर और एक ही धर्म हो, अपने इस महान संकल्प को चरितार्थ कर सम्पूर्ण देशको धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक एकता के सुदृढ़ सूत्र में आबद्ध करने के अपने लक्ष्य में आशातीत सफलता प्राप्त कर लेने के अनन्तर वि० सं० ६८६ तद्नुसार हिजरी सन् ११ ( ई० सन् ६३२ ) में ६२ वर्ष की अवस्था में मुहम्मद साहब अल्लाह के प्यारे अर्थात् स्वर्गवासी हुए । इस प्रकार वि० सं० ६६७ से वि० सं० ६८६ तक, २२ वर्ष पर्यन्त मुहम्मद साहब ने इस्लाम का अरब में प्रचार-प्रसार किया । प्रथमतः वि० सं० ६६७ से ६७६ पर्यन्त १२ वर्षों तक एक विभेद - विहीन समाज की स्थापना हेतु उपदेशों के माध्यम अर्थात् शान्तिपूर्ण रीति से उन्होंने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया । तदनन्तर लगभग १० वर्षों तक वे सैन्य बल के माध्यम से, तलवार के बल से इस्लाम के प्रचार-प्रसार के साथ इस्लामी राज्य की स्थापना के कार्य में निरत रहे और कुल मिला कर २२ वर्ष के कठिन परिश्रम से उन्होंने अपने लक्ष्य की प्राप्ति आशातीत पूर्व सफलता प्राप्त की । पैगम्बर मुहम्मद साहब के बहिस्तगमन के पश्चात् आयशा नाम की उनकी पत्नी का पिता अबूबक सिद्दीकी हिजरी सन् ११ में पैगम्बर साहब का पहला उत्तराधिकारी अथवा पहला खलीफा हुआ । पैगम्बर साहब के पश्चात् अनुक्रमश: १. रनजपूताने का इतिहास, भाग १, पृष्ठ २४८, ( गौरीशंकर हीराचन्द प्रोभा ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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