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________________ [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४ स्वार्थी वर्गों द्वारा प्रकट किये गये प्रबल विरोध एवं उनके द्वारा उपस्थित की गई विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों के उपरान्त भी मुहम्मद साहब अपने सिद्धांतों पर, इस्लाम के उसूलों पर अटल अडिग रूप से डटे रह कर अपने उपदेशों के माध्यम से एकेश्वरवादी धर्म का प्रचार करते रहे । अन्ततोगत्वा विजयश्री ने उनका वरण किया । वि० सं० ६६७ में मुहम्मद साहब द्वारा प्रारम्भ किये गये उपदेशों का प्रभाव स्वार्थी वर्गों के विरोध, अवरोध, प्रतिरोध के उपरान्त भी उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया । उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ते-बढ़ते अरब के बहुत बड़े भाग में फैल गई । मुहम्मद साहब द्वारा चलाये जाने के कारण लोग इस्लाम को मुहम्मदी धर्म के नाम से भी अभिहित करने लगे । एक ही ईश्वर तथा एक ही धर्म को मानने और इस्लाम को अंगीकार करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बराबर के भाई का दर्जा दे दिये जाने के परिणामस्वरूप वे मुहम्मद साहब के अनुयायी एकता के सुदृढ़ सूत्र में आबद्ध हो गये । " प्रत्येक सहधर्मी बन्धु को अपना भाई समझ कर उसे भाई के समान ही सब प्रकार के प्रेम, अधिकार और बराबरी का दर्जा दो"मुहम्मद साहब के इन उपदेशों ने समस्त अरबवासियों के अन्तर्मन में विद्युत् वेग से एक अभिनव संजीवनी शक्ति का संचार कर दिया । मुहम्मद साहब के नेतृत्व में अरबवासी सर्वप्रथम एक अजेय सुदृढ़ सामाजिक शक्ति के रूप में उभर कर प्रकट हुए और वे एकता के सुदृढ़ सूत्र में आबद्ध हो सामूहिक रूप से एकजुट हो सर्वत्र एकेश्वरवादी इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे । अपने अनुयायियों की इस अद्भुत् एवं अपूर्व एकता तथा उनका इंगित पाते ही धर्म के नाम पर बड़ी से बड़ी कुर्बानी, बड़े से बड़ा बलिदान कर देने की उत्कट भावना ने सर्वतोमुखी प्रतिभा सम्पन्न मुहम्मद साहब को सम्पूर्ण अरब के न केवल एक धार्मिक नेता के सर्वोच्च पद पर ही अपितु एक महाप्रतापी राजनैतिक नेता के पद पर भी अधिष्ठित कर दिया । इस प्रकार सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों में उपलब्ध त्रिकोणात्मक शक्ति का बल पर मुहम्मद साहब ने डंके की चोट के साथ तलवार के बल पर इस्लाम के प्रचार-प्रसार का अभियान चलाया। जिस प्रकार ईसा की सातवीं शताब्दी के द्वितीय दशक में तामिलनाडु प्रदेश में शक्ति की छाया में प्रारम्भ किया गया शैव अभियान द्रुततम गति से स्वल्प काल में ही सम्पूर्ण तामिलनाडु प्रदेश पर छा गया, ठीक उसी प्रकार मुहम्मद साहब द्वारा ईसा की सातवीं शताब्दी के तृतीय दशक में तलवार के बल पर प्रारम्भ किया गया इस्लाम के प्रचार-प्रसार का अभियान अरब देश के बहुत बड़े भाग में सफल रहा । धार्मिक सफलता के साथ-साथ मुहम्मद साहब को महती राजनैतिक सफलता भी प्राप्त हुई और वे ईसा की सातवीं शताब्दी के तृतीय शतक के समाप्त होते-होते तो अपने देश के बहुत बड़े भाग के शक्तिशाली शासक, एकेश्वरवादी इस्लाम के सर्वसत्तासम्पन्न सर्वेसर्वा और अल्लाह (ईश्वर) के पैगम्बर के रूप में दूर-दूर तक विख्यात हो गये । अपने इस क्रान्तिकारी धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक अभियान को सफल बनाने के लिए मुहम्मद साहब को अनेक कठिनाइयों से जूझने के साथ-साथ देश ६४ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only ―――― www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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