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________________ भारत पर मुस्लिम राज्य ] [ ६१ मुख्य मूल जड़ मूर्तियों को सर्वप्रथम खण्ड-खण्ड कर नष्ट करने का मुहम्मद साहब ने सुदृढ़ संकल्प किया। इस प्रकार के दृढ़ संकल्प के अनन्तर उन्होंने तीन वर्ष तक अपने पारिवारिकजनों एवं मित्रों के बीच अपने विचारों का प्रचार किया। उन्होंने मक्का की निकटवर्ती पहाड़ी पर एकान्त में ध्यान साधना भी की। ध्यान, गहन चिन्तन-मनन के अनन्तर किये गये इन सुदृढ़ संकल्पों को कार्यरूप में परिणत करने हेतु मुहम्मद साहब ने वि० सं० ६६७ तदनुसार ई० सन् ६१० में अपने आपको मक्का में संसार के समक्ष अल्लाह अर्थात् सर्वशक्तिमान ईश्वरद्वारा प्रेरित पैगम्बर के रूप में प्रकट किया। सर्वशक्तिमान ईश्वर-अल्लाह अथवा खुदा का ध्यान करने पर उसकी कृपा से अहलाम के रूप में प्राप्त हुये पवित्र धर्मग्रन्थ कुरान को उन्होंने अल्लाह की आज्ञा बतलाते हुये बिना किसी ऊंच-नीच, छोटेबड़े, धनी-निर्धन, रंक-राजा आदि के भेदभाव के, मानवमात्र को एक ही ईश्वर अल्लाह की आराधना-प्रार्थना अथवा इबादत करने और अल्लाह की इबादत ने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपना भाई समझने का उपदेश देना प्रारम्भ किया। भारत के तामिलनाडु प्रदेश में, ईसा की छठी एवं सातवीं शताब्दी के सन्धिकाल में प्रारम्भ किये गये, मानव-मानव में भेदविहीन एकेश्वरवादी शैव अभियान का वहां के सवर्ण समाज द्वारा उपेक्षित पिछड़े वर्गों के लोगों ने जिस प्रकार हार्दिक स्वागत करते हुए अपना पूर्ण सहयोग दिया, ठीक उसी प्रकार अरब देश में मुहम्मद साहब द्वारा जन-जन के समक्ष प्रकाश में लाये गये अल्लाह के उपासकों में पारस्परिक भाई-चारे के प्रतीक एकेश्वरवादी एक ही धर्म के सिद्धान्त का साधारणतः सम्पूर्ण अरब के और विशेषतः मक्का के सम्पन्न, सशक्त समाज द्वारा उपेक्षित दलित वर्गों के लोगों ने हार्दिक स्वागत के साथ अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया। मुहम्मद साहब के एकेश्वरवादी एक ही धर्म को मानने के उपदेशों से प्रभावित हो लोग उन्हें अल्लाह का पैगम्बर (दूत) मानने लगे। उन्होंने एकेश्वरवादी धर्म का नाम रखा "इस्लाम", जिसका शाब्दिक अर्थ है-एकेश्वरअल्लाह को अटूट आस्था के साथ सर्वात्मना-सर्वभावेन सम्पूर्णतः आत्म-समर्पण । एकेश्वरवादी धर्म-इस्लाम को कबूल अथवा अंगीकार करने वालों को मुस्लिम अथवा मुसलमान की संज्ञा दी गई, जिसका शाब्दिक अर्थ है—अल्लाह की आज्ञा रूप कुरान में निहित निर्देशों, उसूलों अर्थात् "तौहीद" पर अटूट आस्था के साथ सुदृढ़ रहना। एकेश्वरवादी एक ही धर्म को मानने वाले विभेद-विहीन सुदृढ़ मानव-समाज का संरचना विषयक मुहम्मद सा० के उपदेशों से प्रभावित हो बड़ी संख्या में जन-साधारण ने इस्लाम को अंगीकार करना प्रारम्भ किया और एक अभिनव जागरण की लहर-सी अरब देश के इस छोर से उस छोर तक तरंगित हो उठी । इस देश-व्यापी अभिनव जागरण के परिणामस्वरूप एक लम्बे समय से विशिष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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