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________________ [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ नीच के विवादों एवं विभिन्न जातियों द्वारा अपनी-अपनी सत्ता स्थापित करने के प्रयासों के परिणामस्वरूप परस्पर लड़-झगड़ कर देश को बड़ी तीव्र गति से अधः पतन की ओर ढकेलते हुए स्वयं भी रसातल की ओर अग्रसर हो रहे हैं । पारस्परिक फूट, कलह तथा लड़ाई-झगड़ों में उलझे हुए अरबवासी अपने देश को बर्बाद कर रहे हैं, उसे अशक्त बना रहे हैं। अपने देश और देशवासियों की इस प्रकार की दुःखद दशा पर अनवरत चिन्तन के अनन्तर मुहम्मद साहब ने अनुभव किया कि उनके देशवासी संसार की एकमात्र सर्वोपरि शक्ति-सर्वशक्तिमान् परमपिता अल्लाह को भूल कर विभिन्न देवताओं को मानने लगे हैं, अन्धविश्वासों के वशीभूत बने वे लोग पृथक्-पृथक् विभिन्न देवताओं की मूर्तियां बना अपने-अपने देवताओं को हो सबसे बड़ा शक्तिमान् बता उनकी मूर्तियों की पूजा के प्रश्न को लेकर उसे ही अपना सबसे बड़ा धर्म, सर्वश्रेष्ठ मत बताते हुये परस्पर लड़-झगड़ रहे हैं । फिरिश्ता लिखता है—“इस्लाम के उद्भव काल से पूर्व मिस्र और अरब देश में हिन्दू देव-देवियों की मूर्तियां थीं। उन दिनों भी सरंदीप (लंका) के व्यापारियों के जहाज अफ्रीका और लाल समुद्र के तट पर तथा फारस (ईरान) की खाड़ी में माल ले जाया करते थे। उन जहाजों में हिन्दू यात्री भी मिस्र एवं मक्का में अपने देवताओं के दर्शन एवं उन स्थलों की यात्रार्थ जाया करते थे।"" फिरिश्ता के इस उल्लेख से यह आभास होता है कि अरब में उस समय उस देश के देव-देवियों के अतिरिक्त हिन्दू देव-देवियों की मूर्तियां थीं और उनकी वहां पूजा होती थी। इस प्रकार वहां मत-मतान्तरों एवं देव-देवियों की मूर्तियों का प्राचुर्य था और इन भिन्न-भिन्न प्रकार की मान्यताओं एवं मत-मतान्तरों के परिणामस्वरूप वहां आये दिन लड़ाई-झगड़े होते ही रहते थे। अपने देश एवं देशवासियों के लिये घातक इस प्रकार की दुःखद स्थिति पर गहन चिन्तन के अनन्तर मुहम्मद साहब को दृढ़ विश्वास हो गया कि वास्तव में एकमात्र अल्लाह ही संसार के सर्वोच्च शक्तिशाली ईश्वर एवं मानव मात्र के लिये समान रूप से सर्वोपरि पाराध्य देवाधिदेव हैं। इस प्रकार का विचारमन्थन उनके अन्तर्मन में अनेक दिनों तक चलता रहा। अन्ततोगत्वा अनवरत चिन्तनमनन के अनन्तर उन्होंने दृढ़ संकल्प किया कि वे एकेश्वरवाद की दृढ़ आधारशिला रख कर अपने देश से पारस्परिक कलह के मूल कारण धर्म भेद, मत-मतान्तर, जाति-पांति, ऊंच-नीच, छोटे-बड़े के भेदभाव, छोटी-बड़ी राजसत्ताओं आदि के अस्तित्व को मूलतः नष्ट कर मानवमात्र के लिये एकेश्वरवादी एक ही मानव धर्म की प्रतिष्ठापना करेंगे । विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों की स्थापना एवं उनकी पूजा के प्रश्न को लेकर मुख्यतः मक्का में और साधारणतः सम्पूर्ण अरब देश में आये दिन विवाद, संघर्ष और लड़ाई-झगड़े होते रहते थे अतः इन सब झगड़ों की १. ब्रिग, फिरिश्ता, जिल्द ४, पृष्ठ ४०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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