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________________ भारत पर मुस्लिम राज्य J [ ५६ उनके चचा अबू तालिब के पास गांव में व्यतीत हुआ । इससे उन्हें बाल्यकाल में ही नागरिक जीवन के साथ-साथ रेगिस्तान के कठिनाई भरे ग्राम्य जीवन का, वहां की समस्याओं और ग्रामों में बसे अरबों की वास्तविक परिस्थितियों का भी प्रत्यक्ष अनुभव हो गया । ऐसा प्रतीत होता है कि मुहम्मद साहब की बाल्यावस्था में ही उनके मातापिता का देहावसान हो गया था । मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्ला उल्लिखित उपलब्ध होता है, इस सम्बन्ध में इब्न इशाक के हवाले से एन्साइक्लोपीडिया ग्राफ रिलीजन एण्ड एथिक्स में निम्न रूप में प्रकाश डाला गया है : "It is not possible to throw any serious doubt on the location of Muhammad as a member of a numerous Mecean family, though the name of his father excites suspecion, since Abdullah. (The equivalent of some one) is used at a later period as a substitute for an unknown name, perhaps it is in this case a substitute for the name of which the second element was that of a pagan diety."1 वयस्क हो जाने पर मुहम्मद साहब ने खादिजा नाम की एक धनी विधवा के कारवां (ऊंटों के काफिले ) की देखभाल एवं व्यवस्था का कार्यभार सम्भाला । कारवां के साथ-साथ विभिन्न स्थानों के पर्यटन के परिणामस्वरूप मुहम्मद साहब अरब देश के विभिन्न स्थानों के निवासियों की वास्तविक दशा एवं प्रान्तरिक स्थिति से भी भली-भांति अवगत हो गये । जिस समय मुहम्मद साहब २५ वर्ष की har के हुए उस समय, उम्र में उनसे कई वर्ष बड़ी उस गृहस्वामिनी खादिजा ने उनसे शादी की, जिसके कि कारवां का कारोबार वे करते थे । मुहम्मद साहब से शादी कर लेने के पश्चात् खादिजा ने समय पर एक या एक से अधिक पुत्रों और चार पुत्रियों को अनुक्रमशः जन्म दिया । किन्तु मुहम्मद साहब के वे पुत्र शैशवावस्था में ही फौत हो गये । २ मुहम्मद साहब बाल्यकाल से ही चिन्तनशील तो थे ही अतः वय की वृद्धि के साथ-साथ अपने देश की स्थिति के सम्बन्ध में ज्यों-ज्यों उनका अनुभव बढ़ने लगा त्यों-त्यों वे उत्तरोत्तर अधिकाधिक चिन्तनशील होते गये । वयस्क हो जाने पर जब मुहम्मद साहब ने अनुभव किया कि स्वभाव से ही वीर प्रकृति के धनी होने के उपरान्त भी अरब निवासी अन्धविश्वासों के दलदल में फंसे होने के कारण मूर्ति पूजा, मत-मतान्तरों, विभिन्न धार्मिक मान्यताओं, जातिपांति - कबीलों, ऊंच 1. २. Encyclopaedia of Religion and Ethics, Vol. VIII, page 873 एन्साइक्लोपीडिया ऑफ रिलिजन एण्ड एथिक्स, जिल्द ८वीं, पृष्ठ ८७३ ( हेस्टिग्म द्वारा लिखित ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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