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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ सुविधाओं, सम्मान एवं अधिकारों का उपभोग करते आ रहे अपने आपको जनसाधारण की अपेक्षा विशिष्ट अधिकार सम्पन्न समझने वाले वर्गों के स्वार्थों पर अांच पाने लगी। उन निहितस्वार्थ लोगों ने अपने स्वार्थों की रक्षा के लिए संगठित हो अपने पक्षधरों, अपने आश्रितों एवं अन्धविश्वास में ग्रस्त लोगों को मुहम्मद सा० द्वारा प्रारम्भ किये गये एक ही ईश्वर और एक ही धर्म को मानने तथा एकेश्वरवादी प्रत्येक मानव को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार दिलाने वाले आमूल-चूल क्रान्तिकारी अभियान के विरुद्ध उकसाया-भड़काया। उन स्वार्थी लोगों ने मुहम्मद सा० और उनके अनुयायियों को भांति-भांति के कष्ट देने में अपनी ओर से किसी प्रकार की कोर-कसर नहीं रखी । यह सब कुछ होते हुए भी मुहम्मद सा० १२ वर्ष तक मक्का से एकेश्वरवाद के पैगाम को अरबों में प्रसारित करते रहे । स्वार्थियों द्वारा प्रारम्भ किये गये विरोध ने उग्र रूप धारण कर लिया और स्वार्थी वर्गों के बढ़ते हुए उस वैरभाव के परिणामस्वरूप मुहम्मद सा० और उनके कट्टर अनुयायियों का मक्का में सुरक्षित रूप से रहना तक दूभर हो गया। मुहम्मद सा० के प्रमुख अनुयायियों के एक बड़े समूह को मक्का छोड़ने और ईसाई बहुल एबीसीनियां में शरण लेने को बाध्य होना पड़ा। इस प्रकार की कठिन परिस्थितियों के दौर-वातावरण में यात्रिब (मदीना) में गृहकलह ने गृहयुद्ध का रूप धारण कर लिया। मदीना के निवासियों ने गृहयुद्ध की आग को शान्त करने के लिये मुहम्मद सा० को मदीना आने की प्रार्थना की। मुहम्मद सा० ने मदीनावासियों की प्रार्थना स्वीकार कर ली। मक्का से मदीना के लिये प्रस्थान करने से पूर्व दूरदर्शी मुहम्मद सा० ने बड़ी ही बुद्धिमता से काम लिया। सर्वप्रथम उन्होंने पूर्णतः प्रच्छन्न रूप से अपने परम विश्वासपात्र अंगरक्षकों को मक्का से मदीना भेजा और पर्याप्त संख्या में अपने अंगरक्षकों के मदीना पहुँच जाने पर ई० सन् ६२२ (वि० सं० ६७६) में वे भी चुपचाप मक्का को छोड़कर मदीना की ओर प्रस्थित हुए । यह बड़ा ही जोखिम भरा कार्य था। इसी दिन से हिजरी सन् प्रारम्भ हुअा। इस कार्य में उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, पर सब कठिनाइयों को पार कर वे सकुशल मदीना पहुँच गये । मदीना पहुँच कर मुहम्मद सा० ने वहाँ गृहकलह को शान्त किया। अरब-निवासियों के अनेक कबीले वालों अर्थात् जातियों ने उन्हें अपना पूर्ण सक्रिय सहयोग दिया । अरबवासियों के अनेक कबीलों (जातियों) का हार्दिक सक्रिय सहयोग प्राप्त हो जाने पर मुहम्मद सा० ने अपने अनुयायियों की सेना का गठन प्रारम्भ किया और मक्कावासियों के, विभिन्न स्थानों एवं प्रदेशों से व्यापार हेतु जो कारवां जाते-आते उन पर आक्रमण कर उन्हें लूटना एवं उन पर अपना अधिकार करना प्रारम्भ किया। अपनी सैनिक शक्ति बढ़ा लेने के अनन्तर मुहम्मद सा० ने अपने पूर्व के साथी नागरिक मक्कानिवासियों से अनेक बार युद्ध किये और अन्ततोगत्वा हिजरी सन् ८ में उन्होंने अपनी शक्तिशाली सेना के साथ आक्रमण कर मक्का पर अधिकार कर लिया।
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