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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह [ ७४१ कियो अध्ययन ज स्वामी, बोले धम्मो मंगल एह वे नामी रे ।।१८।। म्हा० जोऊं स्वामी एह गाथा, त्यां रे पुस्तक ले हाथ पाप्या रे ।।१६।। म्हा० गाथा वांची महते जीवराजे, ऊ तो अट लखी ने आपे रे ।।२०।। म्हा० शिष्य रे अक्षर दीठा जाय, आनन्दविमल ने दीधा रे ।।२१।। म्हा० गुरु देखी रे अक्षर तेहना, गुरु पूछे ऐह अक्षर केहना रे ॥२२॥ म्हा० वलता शिष्य एम बोले, नहीं कोई लखमसी तोले रे ॥२३।। म्हा० ई अक्षर लखमसी केरा, रहे मारुदेस मां तेह ना रे ।।२४।। म्हा० प्राचारज कहे तुमे, इहां श्रावक ने लाओ हम कने रे ।।२५।। म्हा० सिख जाय लखमसी पासे, तुम्हें गुरुजी बोलावे उल्हासे रे ।।२६।। म्हा० बन्धव जाए बे हु गुरु पासे, वान्दे मन खुलासे रे ॥२७।। म्हा० गुरु देखी त्यां पूछे हरकिया, तुम्हां किहां बसो छो परदेसी रे ॥२८। म्हा बन्धव बे हु एम बोले, अमे मारुमण्डल सोभे रे ॥२६।। म्हा० खेरंटिया नामे छे एक शहर, अमे बसां छां तिहां गेहेरे ।।३०।। म्हा० एक सुणी गुरु भासे, तुम पुस्तक लखो अम पासे रे ॥३१।। म्हा० पुस्तक लखवा दीघा त्यां आप ही हाथ में लीधा रे ।।३२॥ म्हा० सम्वत् पन्दरह एकत्रीसे, चैत्र मास नमी बुद्ध दिवसे रे ।।३३।। म्हा० उगन्ते प्रहे प्रभाते, उत्तम मुहुर्त विजयसिंह साथे रे ।।३४।। म्हा० नक्षत्र मृगा तेने जोगे, दसमीकालक लखो तेणी योगे रे ॥३५।। म्हा० धम्मो मंगल एहवे नामे, ते तो लखे छे तेने ठामे रे ॥३६।। म्हा० सूत्र नी वली बातां वांची, दीसे. दयामार्ग एमां सांची रे ।।३७।। म्हा० अहिंसा धर्मज जो दीसे, दस विध जति इसे रे ।।३८।। म्हा० एहवो रे मन में जाणी, महतो लखमसी एम बखाणी रे ॥३६।। म्हा० रिख रायचन्द एम बोले, नहिं कोय लखमसी तोले रे ।।४०।। म्हा० बीजी ढाल एम भाखी, ऊ तो दयाधर्म छे साखी रे ॥४१।। म्हा० दूहा : श्री जिन पाय प्रणमी ने बोले, इम श्रव वैन । केम कर धर्म उद्योतसे, श्री लोकागच्छ एन ।।१।। सासननायक रूप रिख, जीव रिख प्रसिद्ध । तस्य पाय प्रणमी करी, तीजी ढाल करन्त ।।२।। रे जीव ! मान न कीजिये ।। ए देशी राग मल्हार ।। तब त्यां लखमसी चिन्तवे, केम कर पुस्तक लखाय । इतो लखू छं एह ना, ते तो सर्व ले जाय ।। दयाधर्म किम चालसे, केम तरवा नो उपाय ।।१॥ त० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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