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________________ ७४० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ जीव अजीव जाण सही रे, इत्यादिक नवतत्व । देसमुखी ते जाणिये रे, कामदार ना सूत ।।१५।। जिने० सोलह से ग्राम तेहने घरे, दुरजनसिंह नरिन्द । तेहना हाकम जाणिये रे, महता जीवराज लखमिन्द ।।१६।। जिनेत एहवा अवसर ने विखे रे, राजभव ए असुवसेस।। तेम करने पांथी बेहू जणा रे, आवे गुरजर देस ।।१७।। जिने० कोई अन्याय ज नाख ने रे, कामदार ने ग्रहे सविसेस । घर सर्वे लूटि लियो रे, किया निर्धन एह जी ।।१८।। जिने० बेहू जणा बेसी तिहां रे, करे बन्धव विचार । आपण जासां के दिसे रे, करवा वरणज व्योपार ।।१६।। जिने० इत्यादिक सर्व जाणिये रे, प्रथम ढाल ए विशेष । रिख रायचन्द जम्पे, जे इस्यो रे, केम होसे धर्म उद्योत जी ।।२०।। जिने० हां रे मारा गणेश पियारा जिन जी० ।।ढाल १।। सूविध जिनेश्वर स्वामी, म्हं तो वांदं छं सिरनामी रे । म्हारा सुविध जिनेश्वर जनजी० ए देशी। लाख जोयण जम्बू प्रमाणे, तेमां भरत क्षेत्र प्रधान रे। म्हारा सुगुरण सनेही सुरणीज्यो ।।१।। बत्तीस सहस्र रे देसो, ते मे गूर्जर खण्ड विसेस रे ।।२।। म्हा० अणहिलपुर एहवे नामे, तिहां बसे छे पुनमिया ठामे रे ।।३।। म्हा० आणन्दविमल एहवे नामे, वे तो पोसालधारी त्यां ही रे ।।४।। म्हा० शिष्य साथ में बहुतेरा, ते तो सात सेह तीसनी जोडी रे ।।५।। म्हा० हेमचन्द्र मुनिराया, सूत्र दसमीकालक लिखो छ रे ।।६।। म्हा० एहवा रे अवसर मांही, देस मारुमण्डल साही रे ।।७।। म्हा० करंटकपुरा एहवे नामे, जीवराज लखमसी त्याही रे ।।८।। म्हा० राज नो भय एह अति मोटो, आपणे केम भरसां तनपेटो रे ।।६।। म्हा० एहवा भयना मारिया, अाव्या अरणहिलपुर बे हू भाई रे ॥१०॥ सेहर नी रचना देखी, ऊ तो मन में विचारे एहवो रे ।।११।। म्हा० सेहर भणो बहू मोटो, दीसे वणज व्यापारी ने सेठो रे ।।१२।। म्हा० फिरता बे हू बन्धव अनुक्रमे, आव्या पूनमिया गच्छ नी पोसाले रे ।।१३।। शिथिलखातो तिहां देखी, बे हू बान्धव करे धर्म विवेकी रे ।।१४।। म्हा० शिष्य पासे त्यां जाई ते बे हू वन्दरणा करे, सिर नमाई रे ।।१५।। म्हा० प्रश्न पूछे बे हू भाई स्वामी सूय, लखो छो इहां ई रे ।।१६।। म्हा० खेमसी मुनि प्रकासे, या तो दसमी कालक लिखां से रे ।।१७।। म्हा० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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