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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
साथ सर्वप्रथम पंचासरा पार्श्वनाथ के दर्शन किये और तदनन्तर उन्होंने बड़े ही हर्षोल्लास के साथ पोशालधारी प्राचार्यश्री प्रानन्दविमलसूरि को वन्दन नमन किया।
. देवाधिदेव प्रभु पार्श्वनाथ और गुरु प्रानन्दविमलसूरि को वन्दन नमन कर चुकने के पश्चात् संघपति जीवराज को लोंकागच्छ के कतिपय श्रावक मिले । कुशलक्षेम की पृच्छा कर लोंकागच्छ के श्रावकों ने संघपति श्री जीवराज से पूछा"आपने यहां किस देव की पूजा की और किस गुरु को वन्दन किया ?" संघपति ने भगवान् पार्श्वनाथ की पूजा-अर्चा और प्रानन्दविमलसूरि को वन्दन-नमन की बात कही। इस पर लोंकागच्छ के श्रावकों ने कहा- “संघवी जी ! बड़े आश्चर्य की बात है कि जिस महापुरुष को देखना था, उन्हें तो आपने देखा ही नहीं। हमारे इस नगर में मेहता लखमसी सच्चे शुद्ध धर्म का उपदेश देते हैं, उनके उपदेश आप अवश्य सुनिये।"
. संघपति जीवराज ने व्यग्रता भरी उत्कट अभिलाषा व्यक्त करते हुए कहा-"बन्धुवरों ! मेहता लखमसी को तो मुझे अवश्य दिखाओ।" संघपति जीवराज की प्रबल उत्कण्ठा देख लोंकागच्छीय श्रावक तत्काल उन्हें मेहता लखमसी के पास ले गये । आगमिक आधार पर मेहता लखमसी के उपदेश को सुनकर संघवी
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एम करि धर्म परूपियो, बझा केई नरनार । एहवा अवसर में प्रकटऊ, दिल्ली संघ गुर्जर मझार । अरिणयलपुर पाटण विषे, निकल्या मारग सार ।।२३।।त०॥ लखमसी साह ने त्यां मल्या, दयाधर्म सुणेह ।।२५।। सांभली वयण लखमसी तणां, समकित सहु सुध कीध । प्रथम भामोसा भारमल्ल, सुणिय लखमसी वैरण ॥२६॥त०।। संजम सुमन प्राणियू, दयाधर्म प्रसिद्ध । सुध समकित दृढ़ त्यां थई, करता उत्तम काम । एहवा अवसर ने विषे, सूरत संघ तब प्राय ।।२८।त०॥. संघपति साथे सही, साह जीवराज ए नाम । चारलाख संघ साथ सू, आव्यो पाटण सहर ॥२६॥ संघपति बाहरे उतर्या, साथे मनुष्य अपार । देव गुरु ने पूजवा, गया शहर मझार ॥३०॥त०॥ प्रथम जात्रा तेणे करी, पंचासरियो पारसनाथ । आनन्दविमलने वांदवा, चाल्या तिह मन उल्लास ॥३१॥त०।।
-एकपातरिया (पोतिया बन्ध) गच्छ-पट्टावली (हस्तलिखित)
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