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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
लोकाशाह द्वारा उपदेश दिये जाने का सम्वत्
१. तपागच्छीय उपाध्याय धर्मसागर ने लोकाशाह द्वारा मूर्ति-पूजा विरोधी प्रवचन
दिये जाने के समय का उल्लेख करते हुए अपनी विक्रम सम्वत् १६२६ की 'प्रवचन परीक्षा' नामक कृति में लिखा है :
श्री विक्रम सम्वत्सरात् अष्टोत्तरपंचदशशतैः विक्कमओ अट्ठ त्तरपन्नरससएहि पावउवएसो । लुंपगविहगोमूलं तस्सवि तस्सेवमुप्पती॥२॥ प्र० परीक्षा भाग २ ।। . तस्स वि एगो मंती, नामेण लखमसीति सम्मिलिओ।।
दोवि उपएसमित्ता, कडुउव्व पव्वट्टिया पाव ।।८।। प्र० परीक्षा । अर्थात् विक्रम सम्वत् १५०८ में लुंपक नामक लेखक ने पापपूर्ण उपदेश देना प्रारम्भ किया और उसके इस प्रकार के उपदेश से लुंपक मत की उत्पत्ति हुई। लखमसी नामक उसका एक मित्र उससे प्रा मिला और दोनों ने मिलकर कडुमा मत की भांति पापपूर्ण धर्म का प्रवर्तन किया।
२. संक्षिप्त लोंकागच्छ पट्टावली (सम्वत् १८२७ ज्येष्ठ कृष्णा १३ बुधवार) में लिखा है :
"प्रथम सम्वत् १५२५ वर्ष मध्ये साह लूको आनन्द सुत जाति ना बीसा श्रीमाली भीनमाल ना वासी अने कालूपुर ना शाह लक्ष्मसी थी दया धर्म प्रकट हुवो।
(पट्टावली लूंका) ३. बड़ौदा यूनीवर्सिटी की लूकागच्छ पट्टावली पुस्तक संख्या २०८३ में उल्लेख
है कि लोकाशाह ने विक्रम सम्वत् १५२८ में शुद्ध दयाधर्म की प्ररूपणा कर गच्छ प्रचलित किया । यथा :
"सम्वत् १५२८ वर्षे श्री अणहिल्लपुरे पाटण मध्ये मुहता लक्का सुबुद्धिए श्री सूत्र सिद्धान्त लखता थका........शुद्ध दयाधर्म नी प्ररूपणा करने गच्छ काढ्यो।"
४. बड़ौदा यूनीवर्सिटी की पुस्तक संख्या १७४२८ में लोंकाशाह की प्ररूपणा के विषय में लिखा है :
"सं० २००० (महावीर निर्वाण सम्वत्) वर्षे लोकेशाह जिनमती सत्य प्ररूपरगा ना करणहार हुआ।"
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