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लोकाशाह
सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
[ ७१३ ५. सतीचन्द नामक मुनि द्वारा रचित लोंकागच्छ के आचार्य दामोदरजी की स्तुति
रूपक दामोदर छन्द में लोकाशाह द्वारा विक्रम सम्वत् १५२८ में दयाधर्म की प्ररूपणा करने का अथवा आगम-वाचन का और विक्रम सम्वत् १५३१ में लोंकागच्छ के प्रथम मुनि भाणजी के दीक्षित होने का उल्लेख किया है। यथा :
वीर जिन भस्मग्रह थिर गति, दोय हजार वरीस । विक्रम सम्वत् वेत सुत पनरसे अठावीस ।।२।। लंके पुस्तक वांची करी, जाण्यो श्री जिनधर्म । जीवदया चित में बसी, टाल्यो मोह भ्रम ॥३॥ लूंका गच्छ जग में प्रकट पनरसे इकतीस ।
भाणे संजम आदर्यो, पहुंती मन जगीस ॥४॥ ६. आचार्य श्री तेजसिंहजी ने अपनी रचना 'गुरु गुण माला भास' में लोंकाशाह
द्वारा शास्त्रों के लेखन, पठन, दयाधर्म का प्ररूपण एवं लोंकागच्छ की स्थापना के समय पर प्रकाश डालते हुए लिखा है :
लूंके जिन वचन नी लबध ते पाई, पोरवाड़ सिद्ध पाटन में लका नामे लुंका कहाई, लके जिन वचन
नी लबध ते पाई ॥१॥
संवत् पनर अट्ठावीसे बडगच्छ, सूत्र सिद्धान्त लिखाई। लिखी परति दोय एक आप राखी, एक दिये गुरु ने ले जाई ॥२॥ दोय बरस सूत्र अरथ सर्व समझी, धर्म विध संघ में बताई। लूंके मूल मिथ्यात उथापि, देव गुरु धर्म समझाई॥३॥ वीर राशिग्रह भस्म उतरतां, जिम वीर कह्यो तिम थाइ । उदे उदे पूजा जिन शासन नी, ति दयाधर्म दीपाई। इगत्रीसे भारणाजी ए संजम लेइ, लंकागच्छे प्रादि जति थाई। लूंकागच्छ नी उत्पत्ति इण विधे कहे तेजसिंघ समझाइ ॥५॥
इति गच्छ सम्बन्ध भास
-मुनिश्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ पृ० २४८ । ७. बड़ोदा यूनिवर्सिटी में उपलब्ध 'विविध गच्छोत्पत्ति आदि की नौंध' में लोंकाशाह की जाति, जन्म स्थान, उनके द्वारा आगमों का लेखन, उनके द्वारा प्ररूपणा एवं शुद्ध साधु मार्ग प्रवर्तित करने के सम्बन्ध में जो सम्वत् सहित उल्लेख किया गया है, वह इस प्रकार है :
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