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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
लोकाशाह
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जब पुस्तक के मालिक ने पुस्तक अधूरी देखी तो लंका लिखारी का तिरस्कार कर उपासरे से निकाल दिया और दूसरे (शास्त्र) भी
उससे लिखवाना बन्द कर दिया।" एक अज्ञात लेखक की हस्तलिखित पट्टावली में भी शास्त्र के पन्ने उदई द्वारा खाये जाने से यति द्वारा लोंकाशाह को शास्त्र लिखने को देने का निम्नलिखित उल्लेख है :
"पुस्तक भण्डार मांहि हुंता ते पाना उदई खादा। ते पाना जोवा ने बाहिर काढ्या हुता, तिवारे लूँको मुहतो श्रावक कारकून दफ्तरी हुतो, एकदा प्रस्तावे उपासरे जती पासे आव्यो हुतो तिवारे जतियां कह्यो ए जिनधर्म नो काम छै । तिवारे कह्य स्यूं काम छै। तिवारे तिणे का जो सिद्धान्त ना पाना उदई खादा छै ते अमने नवा
लिखी आपो तो किल्याण नो कारण छै ।" । जैसलमेर भण्डार से प्राप्त हुई पट्टावली में भी लोंकाशाह द्वारा शास्त्रों के लिखे जाने का विस्तारपूर्वक उल्लेख है। जो इस प्रकार है :
“सम्वत् १५२५ से मुहतो लूंको, आणन्द सुत, जात, ना बीसा श्री माली, भीनमाल ना, कालूपुर मध्ये कारकुन अहमदाबाद मध्ये बसे छै। ते नाणावाट नो व्यापार करे। एकदा जवन प्रायो। तेणे महमूदी एक ना दोकड़ा दीधा। ते. लूके साहे दीधा । तेणे तेहीज दोकड़ा नी चिड़ीमार पासे थी चिड़ी बेचाती लीधी, हणवा माटे । घरे लेई चाल्यो । एहवो व्यापार अनर्थ नो मूल जाणी, बात प्रत्यक्ष देखी वैराग पाम्यो । संवेग भाव मन आणी नाणा ना व्यापार नो सम करी पोता ना घर आयो । पछे उपासरे आवे छै । तिवारे पछे एहवे अवसरे ते भंडारा मांहिला पाना हुंता । ते उदई खादा । ते भण्डारा थी पुस्तक बारे काढ्या। ते पाना उदही खादा दीठा । तिवारे विचार्यों-पाना लिखिये तो वारु। इम विचारे । एहवे लुंको मुहतो उपासरे आव्यो। तिवारे लिंगधारी बोल्या। एक जैनमार्ग नो काम छै। तिवारे लुंको कहे स्यूं काम छै ? तिवारे लिंगधारी बोल्या सिद्धान्त ना पाना उदही खादा छै । सो अमने नवा लिखी पापो तो कल्याण नो कारण छै । घणो लाभ थासी। इम कह्यां मुहतो वचन प्रमाण कीघो। तिवारे यति लूंका मुहता ने एक दशवकालिक नी प्रत दीनी ।............ ते भणी सगली प्रतां बेवड़ी उतारी । एकीक आप राखी । एकीक तेह ने दीधी।"
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