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सामान्य श्रृंतधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह
[ ७०५ रूपचन्दजी कह्यो- वचन देवो। तिवारै लूकै साह कह्यो थे पिण वचन देवो । तिवारै रूपचन्दजी कह्यो म्है काई वचन देवां ? तिवारै लुंकै साह कह्यो हूं जाणूं छू थांहरै धर में इसी तो रिद्धि छै, आ थांह री अवस्था छई, पिण थांह रा धरम रा परिणाम देखी जाणूं छू के थें क्रिया उद्धार करस्यो, सु मांह रो पिण नाम राखो तोहूं थां ने सिद्धान्त लिख देऊ। एहवा लुंकै शाह रा वचन सुणी रूपचन्दजी कह्यो-म्हा रोषचन छै म्ह क्रिया उद्धार कीयो तो नागौरी गच्छ मां पिण थांहरो मांह रो दोनूं रो नाम राखसां । हिवै लूंके शहर जालौर थकी सर्व आगम लिखी रूपचन्दजी ने मेल्या । और देशां ने पिरण मेल्या। हिवै रूपचन्दजी सिंचेजी कने सूत्र सिद्धान्त सुणै भणै । एकदा समे सिंचेजी रूपचन्दजी ने कह्यो-थें क्रिया उद्धार करो तो बडो जगत में नाम हवे, घणी धर्म री महिमा हुवे। थां री वाणी सुणी ने घरणा जीव समझे। चतुर्विध संघ री स्थापना हुवे। तिवा रे रूपचन्दजी कह्यो स्त्री ने समझावी, पिता माता री आज्ञा लेइ दीक्षा लेतूं। वलि रूपचन्दजी कह्यो जियां लगे हूं दीक्षा री अनुमति पाy नहीं तिहां लगे शुद्ध श्रावक रो आचार पालतूं। इम कही ने घरे आव्या । हिवे रूपचन्दजी तत्काल रा कराया सरस भोजन करता, पान बीडा चाबता, अत्तर फुलल लगावता, गुलाबजल सूं स्नान करता, केसर रो तिलक करता, ते सर्व त्याग दीना छै । ..........."
इससे पूर्व इसी पट्टावली में रूपचन्दजी के गृहस्थवास के समय का एक उल्लेख है जो इस प्रकार है
"पछै रेणूजी आपरे वल पडती जमी (बीकानेर में) ले ने सम्वत् १५७८ आसोज सुद १० श्री महावीरजी रे देहरे री नींव रो पायो भर्यो। तथा पछे ताकीद सूं रूपचन्दजी, कमोजी, नगोजी, देहरे रो काम करावे छ।"
लोकाशाह से वचन अथवा प्रतिज्ञा के आदान-प्रदान के अनन्तर रूपचन्दजी आदि की दीक्षा के सम्वत् का उल्लेख करते हुए नागौरी लोंकागच्छ पट्टावलीकार ने लिखा है
"एहवे अवसरै सिद्धान्त वचने करी दोय हजार वर्ष गया भस्म ग्रह पिण ऊतर्यो, तिण समा योगे विक्रम सम्वत् १५८० (वीर निर्वाण सम्वत् २०५०) ज्येष्ठ शुक्ला एकम पडवा रे दिन दीक्षा रो शुभ मुहूर्त पायां थकां हीरागरजी रो महोत्सव गांधी शाह सहसकरणजी, श्री करणजी, सहसवीरजी शिवदत्तजी मांड्यो छ । रूपचन्दजी पंचायइणजी रो महोत्सव शाह रेणुजी
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