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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ एक पातरिया (पोतिया बन्ध) गच्छ के प्राचार्य रायचन्द ने विक्रम सम्वत् १७३६ की अपनी रचना 'एक पातरिया गच्छ पट्टावली' में लोकाशाह को लखमसी के नाम से अभिहित करते हुए उनका जन्म-स्थान मारवाड़ के खरंटियावास नामक शहर में होना और उनकी जाति महता, शाख बीसा श्रीमाली होना बताया है । इस सम्बन्ध में इस पट्टावली के निम्नलिखित पद्य वस्तुतः इतिहासप्रेमियों के लिये मननीय हैं :
वलता लखमसी इम बोलिया, बीसा श्रीमाली अमारी साख ।५। जिणधरमी गच्छ खडतरा, महता हमारी जात ।
मारुदेश ए मैं रहऊं, शहर खरंटिया बास ।६। अर्थात् लखमसी (लौंका महता) ने कहा कि मेरी शाख बीसा श्रीमाली, मेरी जाति महता और मेरा गच्छ खरतर है । मैं जैनधर्म का उपासक हूं। मारवाड में खरंटिया नामक शहर का मैं रहने वाला हूं।
__ इस प्रकार एक पातरिया पट्टावलीकार ने लखमसी अर्थात् लोकाशाह की जाति, शाख (कुल) और उनके जन्म स्थान का परिचय तो उनके मुख से करवाया है किन्तु इनके माता पिता एवं जन्म समय का इस वृहदाकार पट्टावली में कहीं पर भी उल्लेख नहीं किया है। नागौरी लौंकागच्छीय पट्टावली कार ने लौंकाशाह को जालौर नगर का निवासी बताते हुए इस पट्टावली में लिखा है :
"इक पोसालिया तिणां सिद्धान्त रा पुस्तक भूहरा मांहि पड्यां ने उदेही लागी, गल गया जाणी जालौर रो. वासी महा प्रवीण साह लूको लेखक तिण नेबुलावीछानो राखी पुस्तक लिखरण रो दूहो दीनो । अबे लुंकई साह पुस्तक लिखतां थकां साधु को प्राचार देखी ने अरथ रो विचार पामी रोम-रोम विकस्या। मन में विचार्यो धन्य जिन शासन रा साधु, इस गुणों करी विराजमान हुए तिके । उरणां रा चरणां री रज तूं पाप झडे । इसो विचारी और (दूसरा) पाना करी ने जत्यां सं छाने आपरै पण सिद्धान्त लिखै । इम करतां सर्व ग्रन्थ लिखी ने गुरांजी ने दिया, आप रे पिण लिखी। कने राख्या । गुरुजी कने घरे जावरणा री सीख मांगी तिरण अवसरे रूपचन्दजी ने खबर पडी।
तिवारे रूपचन्दजी लँके शाह ने कह्यो मांहने सिद्धान्त देखालो और लिख देवो। तिवारे लुंकइ साह कह्यो, अठे तो लिख्यां जती लडे, सू घरे जाय ने हूं थाने सरव सिद्धान्त लिख मेलसूं । तिवारे
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