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भारत पर मुस्लिम राज्य 1
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पड़ौसी प्रदेशों की ओर भाग निकले। परिस्थितिवशात् जो जैन तामिलनाडु को छोड़ने के इच्छुक नहीं थे, अथवा जो भागने में सक्षम नहीं थे, उनमें से अधिकांश को मौत के घाट उतार दिया गया। जिन जैनों ने शिव की विभूति (राख) अपने भाल पर लगाते हुए अपना धर्म त्याग कर शैव धर्म अंगीकार कर लिया, केवल वे ही जीवित रह पाये ।
तामिलनाडु में शैव अभियानकालीन परिस्थितियों के पर्यवेक्षरण से यही प्रतीत होता है कि राजसत्ता के सहयोग और उस समय निम्न कहे जाने वाले बहुसंख्यक लोगों के सामूहिक सक्रिय सहयोग के अतिरिक्त तामिलनाडु के जैनों की आततायियों के अत्याचारों का समुचित प्रतिकार न करने की वृत्ति ही शैवों को उनके धार्मिक अभियान में सफलता प्राप्त करवाने में सर्वाधिक प्रमुख कारण रही । यह तो एक निर्विवाद तथ्य है कि आततायी के छोटे बड़े किसी भी प्रकार के अत्याचार को क्लैव्यभाव से चुपचाप सहन कर लेना वस्तुतः भीषणतम अत्याचारों की प्रोर छोरविहीन सेना को ग्रामन्त्रित करने के समान है । विश्व का इतिहास साक्षी है कि जिस किसी देश, जाति अथवा धर्म अर्थात् धर्म के अनुयायियों ने श्राततायियों का प्राततायियों के अत्याचारों का सतत सजग रह कर प्रारण-परण से अटूट प्रबल साहस के साथ प्रतिरोध किया, उन्हीं का संसार में समुन्नत अवस्था में अस्तित्व रहा, उन्हीं का प्रतिष्ठा के साथ पल्लवन हुआ । इसके विपरीत जिन जातियों, देशों, संस्कृतियों अथवा धर्म के अनुयायियों ने भेड़ों की भांति क्लैव्यभाव से अत्याचारियों के अत्याचारों को चुपचाप सहन किया, उनका संसार के मानचित्र में अस्तित्व तो दरकिनार, नाम और चिन्ह तक प्रवशिष्ट न रहा । यदि येन-केन प्रकारेण पददलितावस्था में उनका अस्तित्व बना भी रहा तो, संसार ने उन्हें मृत की संज्ञा से ही अभिहित किया, जीवित की संज्ञा से कदापि नहीं ।
जैन धर्म सनातन काल से ही शूरवीरों का धर्म रहा है। जैन सिद्धान्तों में अत्याचार सहन को कायरता और कायरता को महापाप एवं आत्महनन माना गया है । सम्पूर्ण जैन वांग्मय में एक भी ऐसा उदाहरण गहन खोज के अनवरत प्रयासों के उपरान्त भी उपलब्ध नहीं होता, जहां कायरता को, आत्महनन तुल्य क्लैव्य भाव से अत्याचार सहन को प्राचरणीय बताने का इंगित तक किया गया हो । इसके विपरीत प्रत्याचारों के उन्मूलन एवं मानवमात्र के मूल मानवीय अधिकारों की रक्षा हेतु भीषरण संग्रामों में विजयश्री का वरण करने वाले साहसशूरवीरों को श्लाघ्य पुरुष, पुरुषोत्तम आदि प्रशस्त विशेषणों से प्रभिहित एवं अलंकृत किया गया है इतिहास साक्षी है कि मगध के सिंहासन पर आसीन होने के अनन्तर पुष्यमित्र शुंग ने जैन धर्मावलम्बियों पर अत्याचार करने प्रारम्भ किये तो कलिंगराज महामेघवाहन भिक्षुराय खारवेल ने जैन धर्मावलम्बियों की रक्षा के लिए पुष्यमित्र पर आक्रमण कर उसे परास्त किया और जैन इतिहास में अमर नाम प्राप्त कर लिया । दक्षिरण के होयसल ( पोयसल ), गंग, राष्ट्रकूट आदि राज
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