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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
लोकाशाह
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भावीइ तेह भावना लिखीइ छइ-तीर्थंकरनी जन्मभूमि चारित्रभूमि, ज्ञान उपजवानी भूमि निर्वाण मोक्ष गयानी भूमि, तथा वली देवलोक, तथा मेरु पर्वत तथा नंदीसरवरद्वीपादौ, तथा शाश्वती प्रतिमा, तथा वली अष्टापद शत्रुज गिरीनारि, तथा अहिछतायां श्री पार्श्वनाथनई धरणेन्द्रनउ महिमा, एवं तथा पर्वतयं वयरस्वामिनां पगलां, श्री वर्द्धमाननी चमरेन्द्रइं निश्रा कीधी तेह ठामई तीर्थ कह्यां, एतलां सघला तीर्थनी भावना भाविइ।" नियुक्त माहिं वृत्तिमाहिं कहिउ, अनइ श्री आचारांगमाहिं नथी, तु श्री आचारांगनी नियुक्ति वृत्तिमाहिं किहां थकी आव्यां ? इम कहई छई। नियुक्ति-वृत्तिई सूत्रना अर्थ कह्या छइं । आचारांगमाहिं एक कीहा आलावानउ अर्थ तेहमाहिं एतला ठाम वंदनीक कहियां, अनइ श्री वीतरागइं गणधरइं तु न कहियां, जे जे प्रतिमा प्रासादना ठाम ते मूलसूत्रमाहिं किहां दीसता नथी । विवेकी हुइ ते विचारी जोज्यो । एह एकतालीसमु बोल ।
४२. बइतालीसमु बोल :
हवइ बइतालीसमु बोल लिखीइ छइ । हवड़ांना श्रावकनइं परिग्रहप्रमाण दिई छईं, तिहां एहवा नीम दिइं छइं-"प्रतिमा वांद्या पूज्या पाखइ जिमं तु नीम भंगई एकास' करू । अथवा वली प्रतिमानइं वरस १ प्रतिइं प्रांगलूहणां ४ च्यारि, सूक्राडि सेर ४ च्यारि, सोपारी सेर ४ च्यारि, दीवेल सेर १० दस, फूल लाख १, नवं धान, नवं फूल मुंडइ तु घालुं, जो प्रतिमा आगलि ढोयु होइ।" एहवा नीम श्रावकनई दिई छई। अनइ श्री आणंद श्रावकतई परिग्रहप्रमाणमाहिं प्रतिमानइ विहरइ एहवा. नीम नहीं । तेह स्युं कारण? तु इम जाणीइ छइ प्रतिमा वीतरागनई मार्गइं नथी । जु श्री वीतरागनई मार्गइं प्रतिमा हुइ तु आणंद श्रावकनइं एहवा नीम जोइइ । एह बइतालीसमु बोल ।। ४३. त्रेतालीसमु बोल :
हवइ त्रेतालीसमु बोल लिखीइ छइ । हवइं श्री भगवतीमाहि श्रावक कहिया छई घणा, तेह श्रावकनई स्या स्या प्राचारनुं करिवउं कहिउं छइ । तेह पालावरो लिखीइ छइ-"तेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगिया णामं रणयरी होत्था, वण्णो , तीसे णं तुंगियाए नयरीए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभागे पुफ्फवइए णामं चेइए होत्था, . वण्णो , तत्थ णं तुंगियाए रणयरीए बहवे समणेवासया परिवसंति, अड्ढा दित्ता, वित्थिण्णा, विपुलभवणसयणासणजाणवाहणाईण बहुधणबहुजातरूवरयता, आउगपउगसंपउत्ता, विच्छडिअविपुलभत्तपाणबहुदासीदास-गोमहिसगवेलयप्पभूता, बहुजणस्स अपरिभूता, अभिगतजीवाजीवा, उवलद्धपुण्णपावा पासवसंवरनिज्जरकिरियाहिकरणबंधमोक्खकुसला, असहेज्जदेवासुरणागपुवण्ण जक्खरक्खसकिनरकिंपुरिसगरुलगंधवमहोरगादिएहिं देवगणेहिं निग्गंथारो पावयणाग्रो प्रगतिकमणिज्जा, रिणग्गंथे पावयणे रिणस्संकिया, णिक्कंखिया, णिव्विति गिच्छा, लट्ठा,
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