________________
६७८ ]
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ पांच पांडवना कुमर चारित्र लेइनइ सेत्रुजा ऊपरि अणसण कीधां । भावपूजा न कीधी प्रतिमा आगलि तउ इम जाणीइ छइ-तेणई वारइं प्रतिमा प्रासाद नुहता । अनइ वली इम कहई छई-"श्री आदिनाथ सेत्रुजा ऊपरि पूर्व नवाणु वार चडया ।" तेह कीहा सिद्धान्त माहि कहिआ छई, ते देखाड़उ । एह अठत्रीसमु बोल । ३६. प्रोगुणच्चालीसमु बोल :
हवइ अोगुणच्चालीसमु बोल लिखीइ छइ । तथा इम कहई छई-"सेजा ऊपरि घणा सीधा, तेह भणी तीर्थ कहीइ ।” अनइ घणा सीधा भरणी तीर्थ कहीइ तु अढाइ द्वीप पीस्तालीस लाख योजणमाहिं. तेह ठाम नथी, जेह बालाग्र ठाम थकी अनंता सीधा नथी । “जत्थ एगो सिद्धो, तत्थ अनंता सिद्धा । इम तु अढाइ द्वीप सघलुं तीर्थ जाणिवू । सेर्बुजउ तीर्थ किहां नथी कहिउ । एह प्रोगुरगच्चालीसमु बोल ।
४०. च्यालीसमु बोल :
हवइ च्यालीसमु बोल लिखीइ छइ। श्री भगवती माहिं श्री महावीरनइं श्री गौतमई पूछिउं छइं– सनत्कुमार इन्द्र त्रीजा देवलोकनु “सणंकुमारे णं भंते देविन्दे देवराया किं भवसिद्धीए, अभवसिद्धीए, सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्टी, परित्तसंसारी, अणंतसंसारी, सुलहबोही, दुलहबोही, पाराहए, विराहए, चरिमे, अचरिमे?" गोयमा ! सणंकुमारे भवसिद्धि, सम्मदिट्ठी, परित्तसंसारी, सुलहबोही, आराहए, चरमे । से केपट्ठणं भंते एवं वुच्चइ ? “गोयमा सणंकुमारे बहूणं समणाणं, बहूणं समणीरणं, बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं हियकामए सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए णिस्सेय सिए हियसुह अणुकंपिए णिस्सेसकामए, से तेरगट्टणं गोयमा ! सम्मदिट्टी, भवसिद्धि, परित्तसंसारी, सुलहबोही, आराहए, चरमे ।" श्री वीतरागे इम न कहिउं जे "प्रतिमा पूजतां जीव समकित लहइ।" अथवा केणइं लाधं हुइ तउ देखाड़। साधु चरित्रीयानां रूप देखी घणे जीवे समकित लाधां, अथवा पूर्वभवनां सम्यक्त व उदय अाव्यां परित्तसंसार कीघां, अथवा वली जीवना अनुकंपा थकी परित्तसंसार कीधां, ते जघन्यइं तउ अंतर्मुहूर्त्तमाहिं सीझइ । ते उत्कृष्टउ तउ अर्द्ध पुद्गल (परावर्त) माहिं सीझइ। हवइ प्रतिमा पूजतां कोणई जीवई सम्यक्त व लाधउं, अथवा परित्तसंसार कीधु हुई, ते सिद्धान्तमाहिं देखाड़उ । एह च्यालीसमु बोल । ..
४१. एकतालीसमु बोल :
हवइ एकतालीसमु बोल लिखीइ छइ। श्री आचारांग मूलसूत्र माहिं साधु चारित्रीयानइं पांच महाव्रत कह्या छइं। एकेका व्रत नी पांच भावना बोली छइं । जिम आचारांग मांहि तिम श्री प्रश्नव्याकरण माहिं व्रताव्रतनी पांच भावना बोली छई । अनइ श्री आचारांग नियुक्ति अनइ वृत्तिमाहिं कहिउं जे “समकितनी भावना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org