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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास--भाग ४ वीयावेयति । से केरण?णं जाव वीइवयइ ? गोअमा ! फासुएसरिणज्जं भुजमाणे समणे रिणग्गंथे आयाए धम्म नाइक्कमइ, आयाए धम्म अणइक्कममाणे पुढविकायं अवकंखति, जाव तस कायं अवकखति, जेसि पिय णं जीवाणं सरीराइ आहारेंति, ते वि जीवे अवकंखति । से तेणठेणं जाव वीयावयइ ।” एह एकवीसमु बोल ।
२२. बावीसमु बोल :
हवइ बावीसमु बोल लिखीइ छइ । तथा श्री जीवाभिगम मध्ये नंदीसरवरनइ अधिकारइं तीर्थंकर ना कल्याणकादि कनई कारगई घणा एक देवता एकठा मिलइ, मिल्या हुंता क्रीड़ा करइं। इम अष्टाह निका महोत्सव करई। एतली देवतानी स्थिति दीसइ छइ। तथा मागध वरदाभ प्रभास १०२ तीर्थोदक, तीर्थनी माटी ल्यावइ छइ । तथा गंगा सिंधु आदि देइ नदीनइ विषय जइ जलइ ल्यावइं छइ । तथा द्रह नु उदक ल्यावइ छइ । ए आदि देइ नइ देवतानी गाढ़ी घणी सूत्रे स्थिति दीसइ छइ । केतली एक लिखीइ । जोउनइं गंगानां गंगोदक, गंगानी माटी, द्रह ना उदक आण्या माटइ, कांइं गंगा अथवा दह अथवा एह तीर्थ मोक्षनइ न खातइ न थयां । इम देवतानी स्थिति घणीइ छइ। डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो। एह बावीसमु बोल।
२३. त्रेवीसमु बोल:
हवइ वेवीसमु बोल लिखीइ छइ । तथा प्रतिमा ना थापक कहइ पूछीइ छइ जे,-"प्रतिमा केही अवस्था नी करी मांडी छइ ? श्री महावीर तउ पहिलं ३० वरस गृहस्थपणइ हता, पछइ वरस ४२ चारित्रीआ हता। ते हवइ पूछीइ छइ"जिको श्री महावीर नी प्रतिमा करी मांडइ छइ, ते केही अवस्था नी करी मांडइ ?" जउ इम कहइ जे “अम्हो गृहीनी अवस्था करी मांडऊं छऊ।" तउ चारित्रीया नइ वंदनीक टलइ, गृहीनइं तउ चारित्रीओ वांदइ नहीं । अनइजे इम कहइ जे "अम्हो चारित्रीया नी अवस्था करी मांडऊं छऊं।" तउ जोउन ए प्रतिमा माहिं चारित्रीयानुं स्यु लक्षण छइ । चारित्रीयानइं तउ फूल पाणी आभरण एकू न कल्पइ। अनइ प्रतिमा तउ फूल पाणी आभरण इत्यादि घणां वानां सहित दीसइ छइ । डाहा हूइ ते विचारी जोज्यो।
. जेहनई बंदना कीजइ तेहनइं विणओलखिइ किम वांदीइ ? मोक्षमार्गइंतु आराध्य गुण छइ । परिण मोक्षमार्गइं आकार आराध्य नथी। जिम चारित्रीओ गुणवंत हुइ, अनइ सहू श्रावकादिक ते चारित्रीआ गुणवंतनइं वांदइ । कदाचित् कर्मयोगिइ चारित्र मग्न थयुं हंतउं, सीतोदक सचित्तादिक सेवइ, अनइ लिंग हुइ । तउ हुइ, पणि तेहनई कां डाहु हुइ ते वांदइ नहीं। एतला भणी जे गुणहीण थयु । तउ जोउनइं "जेह माहि ज्ञान, दर्शन, चारित्र नु एक गुण नहीं तेहनई किम
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