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१८. प्रढारमु बोल :
हवइ ढारमु बोल लिखीइ छइ - तथा श्री ठारणांग मांहि इम कहिउं - "चउब्विहे सच्चे पंनते, तं जहा - नाम सच्चे, दव्वसच्चे, ठवणसच्चे, भावसच्चे ।" इहां तला एक इम कइहं छई -- जउ वीतरागे स्थापनासत्य कही । तउ स्थापना आराध्य नथी ? तेहना प्रत्युत्तर प्रीछउ ए च्यार सत्य कह्यां, ते भाषा उपरि छई, परिण आराध्य उपरि नथी । एह ठाणांग मध्ये दसमइ ठारणइ दस सत्य कह्यां छइ, तउ ते कांइ दसइ स्युं आराध्य छई ? ते तउ भाषा उपरि छई । ते लिखीए छइ - " दसविहे सच्चे पंनत्ते, तं जहा - जरणवयसच्चे, संमयसच्चे, ठावरणासच्चे, नामसच्चे, रूवसच्चे, पहुच्चसच्चे, विवहारसच्चे, भावसच्चे, भोगसच्चे, उवम्मसच्चे ।” तथा श्री पन्नवरणा मध्ये दसविहे सच्चे भाषापद मध्ये कह्यां छइ । तर जोउनइ ते मध्ये ठवसच्चे कहिउं, ते भाषासत्य कही, परिण आराध्य नहीं । डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो ।
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
इहांइ सच्चे शब्द कहिउ ते एतला भरणी, जे जेहनउं जेहवु नाम हुइ तेहनइं तेहवइं नामिइं बोलावतां जूठू नहीं । जिम को एक नु नाम कुलवर्द्धन हुई, अनइ तेह जयां पछी कुलक्षय थंयुं हुइ, तेहू परिण तेहनइं कुलवर्द्धन कही बोलावतां जूठूं नहीं । तथा घी घडु हुइ, अनइ तेह माहि थी घी ठालव्यु हुई, अनइ तेह घड़ानई घी नु घडु कहीइ । तउ तेहनइं (घी नु घडु ) कहतां जूठूं नहीं । इत्यादिक भाषा उपरि छइ । इहां श्राराध्यविशेष कांइ नथी । डाहा हुइ ते विचारी जोज्यो । एह अढारमु बोल |
१६. श्रोगरणीसमु बोल : -
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हवइ ओगरणीसमु बोल लिखीइ छइ - तथा श्री अनुयोगद्वार मध्ये प्रावश्यकता च्यारि निक्षेपा कह्या छ । तिहां केतला एक कहइ छई - इहां आवश्यक करतां थापना करी मांडवी कही छइ । ते कहरण गाढ़ा विरुद्ध दीसइ छइं । ते प्रीछउ, इहां तउ आवश्यकना च्यारी निक्खेवा कह्या छई, ते इम कह्या छ । नाम आवश्यक ते कहीइं जे कांई जीव श्रथवा श्रजीवनुं नाम आवश्यक दीधुं हुइ । तथा स्थापनावश्यक ते कहीइ, जे साधु अथवा साध्वी अथवा श्रावक अथवा श्राविका जिम आवश्यक करइ । तेहवु आकार को एक करइ, अथवा असद्भाव काष्ठादिकनइं कहइ जे ए आवश्यक ते स्थापना द्रव्यावश्यक कहीइ । तथा द्रव्यावश्यकना घरणां एकक भेद कह्या छई । जाणगसरीर, भविप्रसरीर इत्यादि । तथा लोकविहारणा माहि उठी मुख धोइ लूगडां पहिरइ, तंबोल वावरई, इत्यादिक द्रव्यावश्यक कही । तथा “समरणगुरणमुक्कजोगी, जाव प्रावस्सयं चिठ्ठइ" एह परिण द्रव्यावश्यक कहीइ । इत्यादि घरणां बोल कह्या छई एह माहिं आपणइ कांइ आराध्य नथी । आपणइ तउ लोकोत्तर भावावश्यक आराध्य छइ । डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो ।
इहां सूत्र माहिं आवश्यक करतां स्थापना करवी कही नथी । तथा इहांइ सूत्र ना पणि च्यारि निक्खेवा कह्या छई । तथा बंध आदि देइ घरणां बोल ना
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