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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह [ ६६६ छइं जे–“साधु चरित्रीउ प्रतिमानु वेवावच्च करइ।" तेहना प्रत्युत्तर प्रीछउतिहां तउ एहवा अधिकार छई-जे साधु चरित्रीउ गृहस्थना घर थकी उपधि पाणी भात आणइ, अनइ आणीनइ अनेरा साधुनइं आपइ, ते प्रीछउ जे 'चेइअट्ठ'-चित्यर्थो ज्ञानार्थो एतलइ ज्ञाननइं अर्थई, तथा निर्जरांर्थई आपइ, तथा एहजि सूत्र मध्ये घर विस्तार छइ जे-'अप्रीतिकारियां घर मांहि न पइसइ, अप्रीतिकारियानु भात पारणी उपधि न लीइ।' वली इम कह्य जे "पीढ़ फलग सिज्जा संथारग वत्थ पाय कंबल दंडग रजोहरण निशिज्जा चोलपट्टय मुहपोत्तीय पायपुछणादि भायण भंडोवहि उवगरण", एतला वानां माहिलुप्रतिमानई स्यु काजइ आवई ? अनइ साधुनइं तु ए सघला वानां काजइ आपइ। इहांइ तउ दत्त नउ अधिकार छइ, जे दातारनु दीधुं लेवु । डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो । एह पनरमु बोल । १६. सोलमु बोल : __ हवइ सोलमु बोल लिखीइ छइ । तथा प्रश्नव्याकरण मांहिं पहिलइ प्राथव -द्वारइं पृथ्वीकायनइं अधिकारइं--"गढ़ पीटणी आवाश घर हाट, प्रतिमा प्रासाद सभा इत्यादिकनइं कारणइं पृथ्वीनइं हणइ"-ते श्री वीतरागईं अधर्मद्वार मांहि घाल्यु। इहां तउ प्रतिमाना नीचोड़कर्या दीसइ छइं । डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो। तथा केतलाएक एम कहई छई जे इहांइ तु इम कह्य -- “जे पुवाहिं संति ते मंदबुद्धिया", मंदबुद्धी शव्दई मिथ्यात्वी कहीइ । ए अर्थ सूत्रस्यु मिलइ नहीं। ते एतला भणी जे, पांचमां अधर्मद्वार माहिं परिग्रहनइ अधिकारइं चक्रवत्ति बलदेव वासुदेव अनुत्तरविमानवासी देवता इत्यादि धणां कहीनइ आगलि कह्य जे “मंदबुद्धि ता परिग्रहनउ संचउ करइं" तउ जोउनइं जिको कहई छइं-'मंदबुद्धी शब्दई मिथ्यात्वी' ते अर्थ जूठा, सूत्रविरुद्ध दीसइ छई। डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो । एह सोलमु बोल । १७. सत्तरमुबोल : ___ हवइ सत्तरमुबोल लिखीइ छइ । तथा केतलाएक इम कहइंछई जे 'आज्ञाई धर्म कहीइ, पणि दयाई धर्म न कहिइ" दयाइं धर्म कहिउ छइ ते लिखीइ छइ । तुलिआविसेसमादाय दयाधम्मस्स खंतिए । विप्पसीइज्ज मेहावी तहाभूएण अप्परगा ।।१।। इति श्री उत्तराध्ययन पंचमाध्ययने गाथा ३० । तथा दयावरं धम्म दुगंछमाणे वहावहं धम्म पसंसमाणे । एगंतजं भोययति असीलं रिणवोणिसंजाति को सुरेहिं ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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