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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास--भाग ४
१३. तेरमु बोल :
हवइ तेरमु बोल लिखीइ छइ, तथा श्री उववाई उपांग मध्ये अंबड़ श्रावक नई अधिकारइं एहवा शब्द छइं जे "नन्नत्थ अरहते वा, अरिहंत चेइयाणि वा।" तिहां केतलाएक इम कहई छई जे 'अरिहंत चेइशब्दई प्रतिमा।' तेहना प्रत्युत्तर लिखीइ छइ। “अरिहंत चेइयाणि वा" ए बेह शव्दई अरिहंत ज जाणिवा । केतला एक इम कहस्यइं जे अरिहंतनइं बिहू शब्दई कां कहीइ.? वा शब्दइं तु विकल्प हुइ। "तउ जोउनई सिद्धान्त मांहिं ठामि-ठामि इम कहिउं जे “समणं वा माहणं वां" एक साधुनई बेहू नाम कह्यां । तथा वा शब्द पणि कह्य । तथा श्री सूअगडांग अध्ययन सत्तरमइ एक साधु ना तेरे नाम कह्यां छईं अनइ तेरे नामइ वा शब्द पणि कहिउ छइ । ते लिखीइ छइ–“समणेति वा, माहणेति वा, खंतेति वा, दंतेति वा, गुत्तेति वा, मुत्तेति वा, ईसीति वा, मुणोति वा, किइति वा, विदूति वा, भिक्खूति वा, लू हेति वा, तीरड्ढीति वा ।" इम वली एक वस्तु नां घरणां घरणां नाम आई छई। तथा वली वृत्तिकारइं पणि "अरिहंते वा, अरिहंतचेइयाणि वा"-तिहां अरिहंतज फलाव्या छइं।
तथा चेइ शव्दई सूत्रमांहि घणइ ठामई अरिहंत कह्या छई-"तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया समण भगवं महावीरं वंदामो” इत्यादि । बीजा आलावइ, तथा केतलाएक इम कहइं छइं, जे वत्तिकारइं उघाड़ा माटइं न फलाव्या। तउं-तउं जोउनइ चेइ शब्द उघाडउ के अरिहंत शब्द उघाड़उ ? जड उखाड़उ शब्द न फलावई, तउ इहाइं अरिहन्त शब्द फलाव्य उ जोइइ, नहीं। डाहा हुइ ते विचारी जोज्यो। एह तेरमु बोल । १४. चउदमु बोल :
__हवइ चउदमु बोल लिखीइ छइ। तथा श्री उपासकदशांगमध्ये पाणंद श्रावकनई अधिकारइं केतलाएक इम कहई छई जे प्रतिमा आराध्या छइं । तेहना प्रत्युत्तर प्रीछउ--"नो कप्पई" कहिउं ते मांहिं तउ आपणनई सम्बन्ध कांई नथी। आपणनई तु संबंध कप्पइ माहिं छइ, अनइ कप्पइ मांहि तु प्रतिमा न कही। तथा नो कप्पइ मांहि केतला एक इम कहई छई जे 'अन्यती परिगहीत' चेत्य न कल्पइ। तउ अणपरिगृहीत कल्पइ । तेहना प्रत्युत्तर प्रीछउ-इहां प्रतिमानउ स्यु अधिकार छइ ? इहां तउ इम कह्य जे "जां लगइ ए न बोलावई हूं पूर्विइं न बोल तथा अन्नपानादिक न देउ” तउ जूग्रोनई प्रतिमा कांई बोलइ ? किं वा.अन्नादि प्रतिमानइं काजई आवइ ? डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो। एह चउदमु बोल।
१५. पनरमु बोल :
हवइ पनरमु बोल लिखीइ छइ-तथा श्री प्रश्नव्याकरण मध्ये त्रीजइं संवरद्वारइं “चेइअट्ठनिज्जर?" जे एहवा शब्द छइं, तिहां केतलाएक इम कहई
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