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ष्ठावी तथा पूजी तथा जुहारी किहां दीसती नथी । सहू सरवालइ मनुष्य लोक मांहि एक द्रुपदीइं पूजी दीसइ छइ । ते पूजावानु प्रस्ताव कीहु ? सिद्धान्त न अर्थ तु नय उपरि चालई । ए तु नय संसार ना आरणकारण नु दीसइ छइ जे परणती वेलाई पूजी । वली पुनरपि आखा भव मांहि द्रुपदीइं प्रतिमा पूजी कही नथी । जु मोक्ष नइ खातइ हुइ तो तु परणवा ना अवसरटाली वली पूजइ । पुण ए मोक्ष नइ खातइ नथी दीसती ।
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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
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अनइ जे वास्तुकशास्त्रे तथा विवेकविलास माहिं प्रतिमा घड़ाववा भराववानी विधि बोली, तथा जे हवड़ां जे नवी प्रतिमा भरावइ तथा घड़ावइ, ते घड़ावणहार तेहनइं पूछइ - " मुझनई प्रतिमा घड़ाववानी भराववानी तथा प्रतिष्ठाववानी विधि कहउ ।" तेहइ जोतां संसारनई हेतुइं दीसइ छइ । ते किम ? तो लिखीइ छइ - "एगवीस तित्थयरा संतिकरा हुंति गेहेसु । ” – जे एकवीस तीर्थंकर नी प्रतिमा घरे मांडी शांति करइ । पणि त्रिणि तीर्थंकर नी प्रतिमा घरि न मांडइ । जु मोक्ष नइ खातइ हुइ, तो त्रिणि तीर्थंकर घरि मांड्या शान्ति सिंहं न करई ? तीर्थंकर तु चउवीसइ मोक्षदायक छइ । जेणइ इम कहिउं "त्रिणि तीर्थंकर घरि न मांडी, जेह भणी तेहनइं बेटा न हवा, तेह भणी घरि न मांडीइ ।" एणइ कारणइं संसार नई हेतु दीसइ छइ । पणि मोक्ष नइ खातइ नथी । तथा जि का नवी प्रतिमा भरावइ, तेहनी रासि पूछीनइ तीर्थंकर नी रासि संघाति मिलतां विशेष जोइइ । इम करतइ जे तीर्थंकर संघातई नाड़ीवेध पड़इ, तथा बीआबार पड़इ, तथा नवपंचक पड़इ, तथा षड़ाष्टउं पड़इ इत्यादिक योग उपजइ, ते प्रतिमा भरावइ नहीं, घरि मांडइ नहीं, एहइ जोतां संसार नइ हेतुई दीसइ छइ । तथा वली जिहां प्रतिमा प्रतिष्ठा इच्छइ तिहां आरणकारण घणां करइ छईं । तेह हेतुई जोतई पणि संसार नई खातई दीसइ छइ । तथा वली जे जिणदत्तसूरिनउ कीधउ विवेकविलास तेह मांहिं प्रतिमा घड़ाववानी विधि बोली छइ । तिहां इम कहिउं छइ – “जु प्रतिमा नुं मुख रौद्र पड़इ, तथा बीजा अवयव पाडुआ पड़ई, तउ ते प्रतिमांना करावणहार नई घणी ज हाणि बोली छइ । “पुत्र नी हाणि तथा मित्रनी हाणि तथा धननी हाणि, तथा शरीर नी हाणि " -- इत्यादिक घणां दोष बोल्या छई । एहइ ठाम जोतां संसार हेतुई दीसइ छ, तीर्थंकर तउ कहइनई ज्या न करई । डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो ।
-भाग ४
तथा जिहां सूरिआभई प्रतिमा पूजी तिहां पणि मोक्षनई खातइ पूजी नथी । एतला भणी जिहां जिहां श्री वीतराग वांद्या तिहां एहवा कह्यां- "जे खेयण्णे पेच्चा हिआए सुहाए" - इत्यादि कहतां परभव जाणिवउ । अनइ जिहां प्रतिमा पूजी तिहां "पुव्विं पच्छा हिआए सुहाए" - इत्यादि का । एह अधिकार जोतां मोक्षनइ खातइ नहीं । जु प्रतिमानइं अधिकारइं "पेच्चा" कह्य, हुतउ वीतराग वांद्या अनइ प्रतिमा पूजी सरीखु थाउत । ईख्यां तउ 'वीतराग वांद्या' अनइ ' प्रतिमा पूजी' विचालइ शब्द ना फेर तर गाढ़ा सबला दीसई छई । जे डाहु हुई ते विचारज्यो ।
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