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________________ सामान्य श्रतधर काल खण्ड २ लोकाशाह [ ६५६ प्रागंतु भेग्राए, जाव जाइजरामरणजोणिजम्मणसंसारपुणभवगव्भवासभबपवंचकलंकलि भागिणे णे भविस्संति । ते णो बहुणं दंडणाणं जाव णो बहरणं दुक्खदोमरण साणं णो आभोगिणो भविस्संति । अणातीअं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं भुज्जो णो अपरियट्टिसंति, ते सिजिझस्संति जाव सव्व दुक्खाणं अंते करिस्संति ।" - ए पालावानइं मेलई जे श्री वीतराग नां संतानीमा एकांत दयाइं धर्म प्ररूपई, एगई कहिवइं हिंसाई धर्म न प्ररूपई, एह पांचमु बोल । ६. छठु बोल : हवइ छठ्ठ बोल लिखीइ छईं। तथा केतलाएक इम कहई छई-जु दयाई धर्म, तु तारित्रीउ नदी कांइं उतरई ? तेहनउ उत्तर प्रछ्यो-जइ नदी उतरइ धर्म हुइ, तउ बहू बहू सिं न उतरइ। श्री वीतरागे तु नदी उतरवा नी संख्या बोली। तथा श्री समवायांगनइं एकवीसमें समवाये, तथा दशाश्रुत मध्ये एहवा कह्या जे 'अंतोमासस्स तउ तदकलेवे कारमाणे सबले ।' इहां तउ इम कह्य-जे महीनाना मध्ये त्रिणि लेप लगाडइ ते सबलउ । वरसदीसमाही दस लेप लगाड़इ ते सबलु । तो हवइ जुनोनई नदी उतरई धर्म, तु श्री वीतरागे जिका अधिकी नदी उतरइ तेहनइ सबलउ कां नहीं कहइ ? तथा जे धर्म कर्त्तव्य छइ ते बहु-बहु कीजइ, अनइ बल करीनइ अनुमोदीइ, अनइ नदी तु बह उतरवी नहीं। अनइ उतरिया पछइ अनुमोदइ परिण नहीं : जे विराधना हुई ते निदइ गर्हई तथा साधुनइं विहार करतई केहइक वरिसइं, तथा केहइकइ मासईं तथा केहई कई दिवसि क्षेत्रविशेषइं तथा देशविशेषज्ञ नदी, नावी तथा न उतरिउनुकाइं साधु नदी प्रणउतरिआनउ पश्चा- . त्ताप तउ न करइ । पणि प्रतिमानउ पूजणहार केहइ कइ मासि केहइ कई दिवसि कारणविशेषई प्रतिमा पूजी न सकइ, तु पश्चात्ताप करइ, इम चीतवइ 'जे माहरइ पोतइ पाप जे मई प्रतिमा न पूजाणी।' पणि साधु नदी अरणउतरइ इम न चीतवइ जे-माहरइ पोतइ पाप जे मइ नदी न उतराणी।" जिको प्रतिमा ऊपरि नदीनु दृष्टान्त मांडइ छइ ते सूत्र विरुद्ध दीसइ छइ । ते एतला भणी जे प्रतिमाना पूजनहारनइं प्रतिमा नी पूजा अनुमोदणनइं खातइ छइ । अनइ साधुनई नदीनु उतार निंदवानइ खातइ छइ तथा हवई जेणइं खातइ नदी छइ ते प्रीझ्या । नदी अशक्यपरिहार छइ, अनइ अनाकुटि छइ ते अनाकुटि श्री समवायांग मध्ये एकवीसमइ समवायइ छइ । विवेकी हइ ते विचारी जोज्यो । एह छ8 बोल । ७. सातमु बोल : __ हवइ सातमु बोल लिखीइ छइ । तथा सिद्धान्त मांहि तुगिया नगरी ना तथा आलंभिआ नगरी नां तथा सावत्थी नगरी ना प्रमुख श्रावक गाढ़ा घणां ना अधिकार दीखइ छईं, तथा कुणइ श्रावकई प्रतिमा घड़ावी तथा भरावी तथा प्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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