________________
सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] .
जैन संघ की स्थिति
[ ६३१
सपिणी काल कहेवा मां पाव्यो छे। आवो काल अनन्ती अवसपिरिणयो बीततां ज आवे छे । तेवो पा चालू काल थयो छे । ते साथे वीर प्रभु ना निर्वाण वगते बे हजार वर्ष नो भस्म ग्रह बेठेलो ते साथे मल्यो, तेम ज तेनी साथे असंयति पूजा रूप दसमो अछेरो पोता नु जोर बताव्या लाग्यो । एम चारों संयोगो भेगा थवा थी या चैत्यवास रूप कुमार्ग जैन धर्म ना नामे चोमेर फेलावा मांड्यो । गुरुयो स्वार्थी थई योग्यायोग्य नो विचार पडतो मूकी जो हाथ मां प्राव्यो ते ने मूंडी ने पोता ना वाडा बधारवा मांड्या । अने छेवटे बेचाता चेला लई विना वेराग्ये तेम ने पोता ना वारस तरीके नींववा मांड्या ।
हवे कहेवत छई के यथा गुरुस्तथा शिष्यो, यथा राजा तथा प्रजा। ते प्रमाणे गुरुग्रो शिथिल थतां तेमने तथा नीचे ना यतियो तेमना करतां पण वधु शिथिल थया । तेस्रो दवा दारु, डोरा धागा वगैर करीने लोको ने वश मा राखवा लाग्या । वेपार करवा लाग्या तथा खेती वाडी सुद्धा करवा तत्पर थया । तेम छतां तेश्रो पोता ने महावीर प्रभु ना वारिस चेलामो तरीके अोलखावी पोता नु भान सांचववा मांड्या । .
आणी मेर तेमना रागी श्रावको अांधा बरणी तेमना पंजा मां संपडाई तेरो जे कांई एंरूध चतुसमझावे ते बधु वगैर विचारे अने वगैर तकरारे हां जी हां जी करी स्वीकारवा लाग्या। कारण के लोको नु मुख्य भाग हमेशा भोलो रहे । तेथी तेवा भोलायो ने, कपटीवेशधारी चैत्यवासियो अनेक बाहना ऊभा करी ने ठगवा मांड्या............।
प्रा मामलो एटले लग बध्यो के निर्ग्रन्थ मार्ग विरल थई पड्यो । निर्ग्रन्थ प्रवचन पर ताला देवाया। अने कपोल कल्पित ग्रन्थो तेम नी जग्या ए ऊभा करवा मां आव्या । एटलुज नहीं पण............।
अपूर्ण एवं यांशिक क्रियोद्धारों के परिणामस्वरूप विभिन्न गच्छों की उत्पत्ति, गच्छों में व्याप्त पारस्परिक क्लेष, द्वेष, वैमनस्य कलह के परिणामस्वरूप श्रमण वर्ग में शिथिलाचार किस दयनीय स्थिति में पहुंच चुका था इस सम्बन्ध में तपापक्षीय राजविजयसूरि गच्छ की पट्टावली का निम्नलिखित उल्लेख प्रत्येक सच्चे जैन के लिये चिन्तनीय एवं मननीय है :--
"५८वें पाट पर श्री प्रानन्द विमलसूरि हए । एक समय पाबू पर यात्रार्थ गये। सूरि जी चतुर्मुख चैत्य में दर्शन कर विमल वसही के दर्शनार्थ गये। गभारा के बाहर खड़े दर्शन कर रहे थे, उस समय अर्बुदा देवी श्राविका के रूप में प्राचार्य के दृष्टि-गोचर हुई। आचार्य श्री ने उसे पहचान लिया और कहा-"देवी ! तुम शासन भक्त के होते हुए लुगा के अनुयायी जिन मन्दिर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org