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भारत पर मुस्लिम राज्य ]
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वाले वर्ग द्वारा निम्न कहे जाने वाले विपन्न अथवा अभाव-अभियोगग्रस्त मानव समाज के अमानवीय उत्पीड़न ने अन्तर्द्वन्द्व, संघर्ष एवं अन्तःकलह को जन्म दे आर्यधरा के जनजीवन को विक्षुब्ध कर अशान्त बना दिया। गांव-गांव, नगर-नगर और प्रायः सभी राज्यों तथा प्रान्तों में गृहकलह तुल्य दयनीय स्थिति उत्पन्न हो गई । सुदृढ़ संघशक्ति द्रुत गति से क्षीण होने लगी। भारत एवं भारतवासियों को इस प्रकार की दयनीय दुर्दशा से, वर्ण-वर्गसंघर्ष, गृहकलह एवं अमानवीय उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने का बीड़ा तिरु ज्ञानसम्बन्धर और तिरु अप्पर नामक दो शैव सन्तों ने उठाया।
तिरु ज्ञानसम्बन्धर और तिरु अप्पर ने लगभग ई० सन् ६१० से ६३० के बीच की अवधि में भारत के दक्षिणापथस्थ तामिलनाडु प्रदेश के जन-जन के समक्ष एकेश्वरवाद का सन्देश प्रस्तुत करते हुए कहा :
"ईश्वर एक है, वह प्राणिमात्र के लिये शिव अर्थात् कल्याणकारी है। वही परमेश्वर शिव मानवमात्र का एक मात्र आराध्य देव और पिता है । हम सभी मानव उसी परमेश्वर शिव के पुत्र हैं। विश्वकबन्धु विश्वेश्वर शिव की सन्तति होने के कारण सभी मानव समान हैं। मानव मानव में ऊँच-नीच, छोटे-बड़े का कोई भेद, कोई अन्तर न होने के कारण सभी को सभी प्रकार के मानवीय अधिकार समान रूप से प्राप्त होने चाहिये।"
तिरु अप्पर और ज्ञानसम्बन्धर इन दोनों "समकालीन शैव सन्तों ने वर्णविहीन, जातिविहीन एक ऐसे एकेश्वरवादी समाज के निर्माण के लिये जन-जन का आह्वान किया, जिसमें प्रत्येक मानव को एक ही पिता के पुत्रों की भांति सामाजिक, धार्मिक, नागरिक, शैक्षणिक आदि सभी प्रकार के मानवीय अधिकार एक रूपता लिये हुए समान रूप से प्राप्त हों। मानव-मानव के बीच इन मानवीय अधिकारों की दृष्टि से किसी भी प्रकार के अन्तर, भेदभाव अथवा न्यूनाधिक्य के लिये कहीं कोई किसी भी प्रकार का नाम मात्र का भी अवकाश उस एकेश्वरवाद के उपासक मानव समाज में न रहे।
शैव सन्तों का यह विभेदविहीन एकेश्वरवादी शैव अभियान अपने उद्भव के साथ ही सम्पूर्ण तामिलनाडु प्रदेश में लोकप्रिय हो गया। सवर्णों द्वारा जिन लोगों को निम्न वर्ण, निम्न वर्ग अथवा निम्न जाति की संज्ञा से अभिहित किया जाने लगा था, उनकी संख्या सवर्णों की अपेक्षा पर्याप्तरूपेण अधिक थी। उन्होंने ऊँच-नीच के भेदभाव को समाप्त कर उन सब को समान अधिकार, समान व्यवहार, समान समादर प्रदान करवाने वाले उस वर्गभेदविहीन मानव समाज की संरचना करने वाले एकेश्वरवादी शैव अभियान को अपने लिये ईश्वरीय वरदान समझ कर उस अभियान को अपना शत-प्रतिशत समर्थन प्रदान करने के
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