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सामान्य श्रुतधरं काल खण्ड २ ]
विशाखगणि
इस कृषकाय तित्थोगाली पइण्णय की रचना की गई। और ताड़पत्रों पर विक्रम सम्वत् १४५२ में लिखित इसकी एक प्रति पाटण के भण्डार में उपलब्ध है।
इसमें उल्लिखित अनेक तथ्यों में से एक तथ्य ऐसा है, जो अतीत के इतिहास की गहन खोज करने वाले समस्त शोधार्थी समाज को चमत्कृत कर देने वाला है । वह तथ्य यह है कि वीर निर्वाण सम्वत् २००० तदनुसार विक्रम सम्वत् १५३० में विशाख मुनि के स्वर्गस्थ होने पर कतिपय आगमों का ज्ञान विच्छिन्न हो जायगा। विक्रम सम्वत् १४५२ में आलेखित इस ग्रन्थ में आलेखन काल से ७८ वर्ष पश्चात् घटित घटना का उल्लेख देखकर प्रत्येक विचारक को निश्चित रूप से बड़ा आश्चर्य होगा । भगवान् महावीर के प्रथम पट्टधर आर्य सुधर्मा से लेकर प्रभु के आठवें पट्टधर आर्य स्थूल भद्र (वीर निर्वाण सम्वत् १ से २१५) तक की घटनाओं के पश्चात् वीर निर्वाण सम्वत् १००० से २००० तक की अंग ह्रास विषयक घटनाओं का उस-उस समय में हुए आचार्यों के नामोल्लेख के साथ इस तित्थोगाली पइण्णय में उल्लेख है। विशाख मुनि के पूर्ववर्ती प्राचार्यों की जो नामावली इस ग्रन्थ में दी हुई है, वह 'दुस्समा समण संघ थयं', 'युग प्रधान पट्टावली' आदि ग्रन्थों में भी उपलब्ध है । इन ग्रन्थों से इस बात की पुष्टि होती है कि 'तित्थोगाली पइण्णय' में जिन आचार्यों का उल्लेख है वे सब ऐतिहासिक महापुरुष हैं। इस प्रकार की स्थिति में हमें यह भी मानना होगा कि वीर निर्वाण सम्वत् २००० अर्थात् विक्रम सम्वत् १५३० में स्वर्गस्थ हुए 'विशाख मुनि' भी ऐतिहासिक महापुरुष हुए हैं। त्रिकालदर्शी भगवान् महावीर के उपदेशों के आधार पर गणधरों द्वारा ग्रथित आगमों में और उनके आधार पर पश्चाद्वर्ती प्राचार्यों द्वारा ग्रथित ग्रन्थों में भावी घटनाओं के उल्लेख को देखकर किसी को आशंकित अथवा आश्चर्याभिभूत नहीं होना चाहिये।
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रायगिहे गुणसिलए, भरिणया वीरेण गरणहराणां तु । पय सय सहस्समेयं, वित्थरो लोगनाहेणं ॥५॥ अइ संखेवं मोत्तुं, मोत्तूण पवित्थरं अहं भरिणमो । अप्पक्खरं महत्थं, जह भरिणयं लोगनाहेण ॥६॥ -तित्थोगाली पइण्णय, मुनिश्री कल्याणविजयजी एवं श्री गजसिंह राठौड़ द्वारा सम्पादित ।
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