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जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
वीर निर्वाण सम्वत् १३०० में माढर गोत्रीय प्राचार्य सम्भूति के स्वर्गस्थ होने पर समवायांग का ह्रास होगा ।
वीर निर्वारण सम्वत् १३५० ( १३६० ) में आचार्य आर्जव यति ( संभूति) के स्वर्गस्थ होने पर स्थानांग का व्यवच्छेद होगा ।
वीर निर्वाण सम्वत् १४०० में काश्यप गोत्रीय ज्येष्ठ भूति ( ज्येष्ठांग गरि ) के निधन पर कल्प व्यवहार सूत्र का ह्रास हो जायगा ।
वीर निर्वारण सम्वत् १५०० ( १५२० ) में गौतम गोत्रीय महा सत्वशाली प्राचार्य फल्गुमित्र के स्वर्गस्थ होने पर दशाश्रुत स्कन्ध का व्यवच्छेद हो जायगा ।
वीर निर्वारण सम्वत् १९०० भारद्वाज गोत्रीय महा सुमिरण (सुमिरणमित्र अथवा स्वप्नमित्र ) नामक आचार्य के स्वर्गवासानन्तर सूत्रकृतांग का ह्रास अथवा व्यवच्छेद हो जायगा ।
१०. वीर निर्वारण सम्वत् २००० में विशाख मुनि के स्वर्गस्थ होने पर वीर निर्वारण सम्वत् २००० से ३००० के बीच की अवधि में कतिपय अंगों का ज्ञान व्यवच्छिन्न हो जायगा ।
११. वीर निर्वारण सम्वत् २०,००० ( बीस हजार ) में हारित गोत्रीय विष्णु मुनि के स्वर्गस्थ होने पर आचारांग का व्यवच्छेद हो जायगा ।
१२. वीर निर्वारण सम्वत् २१,००० ( इक्कीस हजार ) की कुछ ही घड़ियां शेष रहते-रहते अन्तिम प्रचारांगधर दुःप्रसह प्राचार्य के स्वर्गस्थ हो जाने पर चारित्र सहित आचारांग पूर्णतः नष्ट हो
जायगा ।
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इस प्रकार 'तित्थोगाली पइण्णय' में वीर निर्वाण सम्वत् ६४ में आर्य जम्बू . के मुक्त होने पर केवलज्ञान आदि दश प्रकृष्ट प्राध्यात्मिक शक्तियों के विच्छेद सहित वीर निर्वारण सम्वत् १७० से वीर निर्वाण सम्वत् २१,००० ( इक्कीस हजार) तक द्वादशांगी के ह्रास विनाश का प्रति संक्षिप्त विवरण उपलब्ध है । वर्तमान काल में उपलब्ध इस 'तित्थोगाली पइण्णय' की रचना किसने की और कब की, इस प्रश्न का उत्तर किसी ठोस निर्णायक प्रमाण के अभाव में हम नहीं दे सकते । पर अज्ञातनामा ग्रन्थकार के कथन के आधार पर यह तो कह सकते हैं कि स्वयं भगवान् महावीर के उपदेश के आधार पर गणधरों द्वारा गुम्फित एक लाख श्लोक प्रमाण तित्थोगाली पइण्णय नामक पूर्वकाल में विद्यमान विशाल ग्रन्थ के आधार पर
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