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ऐतिहासिक तथ्य ]
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स्वयं की आम्नाय, स्वयं की सम्प्रदाय और स्वयं के संघ को छोड़कर शेष सबको हीन, असत्य, मिथ्यात्वी आदि सिद्ध करने की प्रवृत्ति ने बल पकड़ा और शताब्दियों से एकता के सूत्र में आबद्ध जैनसंघ में गच्छों आदि की उत्तरोत्तर बढ़ती ही जाने वाली शृङ्खला की निर्माण प्रक्रिया का प्रादुर्भाव हो गया।
उस विघटनकारिणी मूलभूत संबसे बड़ी भूल और उसकी सन्तति छोटीबड़ी भूलों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुए मान्यताभेदों, गच्छों और गच्छों में घर किये हुए विद्वेष, कलह आदि का यथातथ्य रूप से इस दर्पण तुल्य इतिहास में निष्पक्ष, वास्तविक विवरण देने का यही उद्देश्य है कि हमारी भावी पीढ़ी इन आत्मघाती भूतकालीन भूलों के साथ इन सब भूलों की जननी एक मात्र आगम को ही प्रामाणिक नहीं मानने की सबसे बड़ी भूल को सुधारने का प्रयास करे। अगर यह सुधार की भावना प्रत्येक जैन धर्मावलम्बी के अन्तर्मन में तरंगित हो उठे और एकमात्र आगमों तथा आगमानुकूल ग्रन्थों को ही प्रामाणिक मानकर श्रमण भगवान् महावीर के धर्मसंघ को पुनः उसके पुरातन प्रतिष्ठित पद पर अधिष्ठित करने की ओर एकता के समवेत घोष के साथ सामूहिक रूप से जैन जगत् के चरण चल पड़ें तो हम अपने प्रयास को शत-प्रतिशत सफल व सार्थक समझेंगे ।
हमें आशा ही नहीं अपितु दृढ़ विश्वास है कि विगत सुदीर्घ अतीत में उत्कर्ष अथवा अपकर्ष की ओर बढ़े जैन संघ के चरण-चिह्नों को इस इतिहास-दर्पण में प्रत्यक्षवत् देखकर जैन-दर्शन के महान् आधारस्तम्भ भूत "मित्ती मे सव्व भूएसु" के सिद्धान्त में आस्था रखने वाला प्रत्येक जैन धर्मावलम्बी अपने ही आत्मीय स्वधर्मी बन्धुओं के साथ की गई “अमित्ती निय बन्धुसु" जैसी भयंकर भूल को सुधारने के लिये दृढ़ संकल्प के साथ कटिबद्ध हो विश्व बन्धु श्रमण भगवान् महावीर के विश्व-कल्याणकारी परम पुनीत धर्मसंघ को सर्वाधिक शक्ति सम्पन्न बनाकर विश्व-शान्ति की स्थापना में सहभागी होगा।
धार्मिक क्रान्तियां और भारत
- पर मुस्लिम राज्य : . भारत पर मुसलमान आततायियों के जिहाद (इस्लाम के प्रसारार्थ युद्ध)परक आक्रमणों से व्याप्त विभीषिका, जनसंहार, लूटमार एवं बलात् सामूहिक धर्म-परिवर्तन आदि का सभी भारतीय धर्मों की भांति जैन धर्म और जैनधर्मावलम्बियों पर भी बड़ा घातक प्रभाव पड़ा। इस प्रकार के आक्रमणों के परिणामस्वरूप शताब्दियों तक न केवल भारतीय धर्मों की प्रगति ही अवरुद्ध रही अपितु उनमें से अनेक धर्मों के अस्तित्व तक पर अनेक बार घोर संकट आये। अति पुरातन काल से भारत के अभिन्न अंग के रूप में रहे सिंध प्रदेश पर अरबों के आक्रमण एवं मुस्लिम राज्य की संस्थापना के अनन्तर तो वहां जैनधर्म का नाम लेने वाला तक
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