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________________ ५६४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ इधर मलाबार में जगड़ शाह के मुनीमों ने जहां अनाज का गोदाम बनाया वहां धान्य के अन्य व्यापारियों के भी गोदाम थे। जगड़ शाह के बखार अर्थात् गोदाम और एक अन्य व्यापारी के गोदाम के बीच में एक पाषाण शिला पड़ी हुई थी । उस शिला पर उन दोनों गोदामों के मुनीम प्रातःकाल बैठ कर दांतुन किया करते थे। एक दिन प्रातःकाल ऐसा संयोग बना कि दोनों गोदामों के मुनीम दातुन करने के लिए उस शिला के पास एक साथ ही पहुंचे। वह शिला इतनी ही बड़ी थी कि उस पर केवल एक आदमी ही बैठकर दांतुन कर सकता था, दो आदमी एक साथ नहीं। शिला के पास पहुंचते ही वे दोनों मुनीम एक दूसरे से कहने लगे- “मैं पहले इस शिला पर बैठ कर दांतुन करूंगा।" इस प्रकार, “पहले मैं, पहले मैं" कहते-कहते जगड़ शाह के मुनीम और दूसरे व्यापारी के मुनीम में परस्पर विवाद उग्र रूप धारण कर गया। राजकर्मचारियों ने उन्हें समझाने का प्रयास किया पर उन दोनों में से कोई भी अपने हठ को छोड़ने के लिए राजी नहीं हुआ। दोनों मुनीमों को हठ पर डटा देख राज्याधिकारी ने कहा-"पाप दोनों में से जो व्यक्ति राजा को ६०० स्पर्द्धक (प्राचीन काल में प्रचलित एक प्रकार का सिक्का जो द्रम्म से बड़ा होता था) देगा, वही इस शिला पर पहले बैठ कर दांतुन करेगा। राज्याधिकारी द्वारा रखी गई शर्त को सुनते ही दोनों मुनीम ६०० स्पर्द्धक देने के लिये तत्काल तैयार हो गये। दूसरे व्यापारी के मुनीम ने कहा- "मैं ७०० स्पर्द्धक दूंगा।" जगड़ शाह के मुनीम ने कहा- "मैं ८०० स्पर्द्धक दूंगा।" अब तो दोनों व्यापारियों के मुनीमों में परस्पर होड़ सी बद गई, दोनों ही एक दूसरे से बढ़-बढ़ कर धनराशि देने की बात कहने लगे। दोनों ही मुनीम अपनेअपने श्रेष्ठि के बड़प्पन की बात लोगों के मानस में जमाने पर तुले हुए थे । अड़ोसपड़ोस के व्यापारियों के मुनीमों एवं कर्मचारियों का जमघट-सा वहां लग गया। दोनों मुनीम अपने-अपने श्रेष्ठि की हीनता प्रकट नहीं होने देना चाहते थे । वे निरन्तर एक दूसरे से बढ़ कर धनराशि देने की बद-बद कर बड़े गर्व के साथ उच्च एवं उग्र स्वर में घोषणा करने लगे । अन्ततोगत्वा जगड़ शाह के मुनीम ने धनराशि को एकदम बढ़ाते हुए घोषणा की कि वह राजा को २५०० स्पर्द्धक देगा । दूसरे व्यापारी के मुनीम को अब इससे आगे धनराशि देने का साहस नहीं हुआ और राज्याधिकारियों ने २५०० स्पर्द्धक जगड़ शाह के मुनीम से लेकर तत्काल वह शिला सदा के लिए जगड़ शाह के स्वामित्व में अधिकार में मुनीम को सम्हलाते हुए उस पर जगड़ शाह का अधिकार घोषित कर दिया । जगड़ शाह के मुनीम ने उपस्थित जनसमूह के समक्ष उस शिला पर उसी समय बैठ कर गर्वानुभूति करते हुए दांतुन किया। जगड़ शाह के आने पर मुनीम ने उसे शिला सम्बन्धी पूरा विवरण सुनाया। उससे जगड़ शाह बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने अपने मुनीम की पीठ थपथपा कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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