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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
अंचलगच्छ
[ ५४७ हेर-फेर करने वाला व्यक्ति ऐसे जघन्य अपराध का अपराधी माना गया है जिसके बन्ध के परिणामस्वरूप उसे अनन्त-अनन्त काल तक भयावहा भवाटवी में भटकते हुए घोरातिघोर दुःसह्य दारुण दुःखों का पात्र बनना पड़ता है।
___जिन प्रतिमाधिकार' में उल्लिखित उस नकली पाठ के साथ-साथ भगवती सूत्र के द्वितीय शतक के पंचम उद्देशक में तुगियानगरी के श्रावकों के विवरण का मूल पाठ भी यहां दिया जा रहा है, जिससे कि विज्ञ पाठकों को भलीभांति यह विदित हो जाय कि चैत्यवासियों के प्रभाव में आकर सुविहित परम्परा के विद्वानों ने जैन वाङ्मय को विकृत करने हेतु किस-किस प्रकार के हास्यास्पद प्रयास किये हैं।
भगवती सूत्र का प्रतिमाधिकार में उल्लिखित वह नकली पाठ इस प्रकार है :
___ "ते णं काले णं ते णं समये णं जाव तुगिनाए नगरीए बहवे समणोवासगा परिवसंति-संखे, सयगे सिलप्पवाले, रिसिदत्ते, दमगे, पुक्खली निविठे, सुप्पइठे, भाणुदत्ते, सोमिले, नरबम्मे, पाणंदे, कामदेवा इणो अ जे अन्नत्थ गामे परिवसंति, अहादिता विच्छिन्न विपुल वाहणा जाव लट्ठा गहिअट्ठा, चाउद्दसट्टमुद्दिट्ट पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं पालेमाणा निग्गंथाणं निग्गंथी णं फासु एसणिज्जे णं असणं पडिलाभेमारणा चेइआलएसु तिसंझा समए चंदण पुफ्फ धूप वत्थाईहिं अच्चणं कुरणमारणा जाव जिणहरे विहरंति, से तेणढेणं गोअमा जो जिण पडिमं पूएइ सो नरो सम्मद्दिट्ठी जारिणयव्वो, मिच्छादिटिस्स नाणं न हवइ ।”
भगवती सूत्र का मूल पाठ इस प्रकार है :
"ते णं काले णं ते णं समये णं तुगिया नाम नगरी होत्था, वणो , तीसे णं तुगियाए नगरीए बहिया उत्तरपुरिच्छिमे दिसिभाए पुप्फवतिए नाम उज्जाणे होत्था, वण्णयो, तत्थ णं तुगियाए नयरीए 'बहवे समरगोवासया परिवसंति अड्ढा दित्ता विच्छिण्ण विपुल भवरण सयपासणजाणवाहणा इण्णा, बहुधरण बहुजाय रूवरयया, आप्रोगपयोगसंपउत्ता विच्छड्डिय विपुलभत्तपारणा बह दासी दास गोमहिसगवेलयप्पभूया बहजरणस्स अपरिभूया अभिग जीवाजीवा, उवलद्धपुण्णपावा पासव संवर निज्जर किरियाहि करण बंधमोक्ख कुसला, असहेज्ज देवासुर नाग सुवण्ण जक्ख रक्खस किंनर किंपुरिस गरुल गंधव महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाप्रो पावयणाप्रो अणतिक्कमणिज्जा, निग्गंथे पावयणे निस्संकिया निक्कंखिया निवित्तिगिच्छा, लट्ठा, गहियट्टा, पुच्छियट्टा, अभिगयट्ठा, विरिणच्छियट्टा, अट्ठिम्मिंजपेम्माणुरागरत्ता, अयमाउसो ! : निग्गंथे पावयणे अठे, अयं परमठे, सेसे अपठे, ऊसियफलिहा, अवंगुयदुवारा चियत्तं ते उसघरप्प
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