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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ अंचलगच्छ [ ५४५ - प्रतिष्ठाचार्य की योग्यता मूरिश्चार्यदेश समुत्पन्नः, क्षीणप्रायकर्ममलश्च, ब्रह्मचर्यादि गुणगणालंकृतः, पंचविधाचारयुतः, राजादीनामद्रोहकारी, श्रुताध्ययन संपन्नः, तत्वज्ञः, भूमि गृह वास्तु लक्षणानां ज्ञाता, दीक्षा कर्मणि प्रवीणः, निपुण: सूत्रपातादि विज्ञाने, स्रष्टा सर्वतो भद्रादिमंडलानाम्, असमः प्रभावे, आलस्य वर्जितः, प्रियंवदः, दीनानाथ वत्सलः, सरल स्वभावो, वा सर्व गुणान्वितश्चेति ।" अर्थात् प्रतिष्ठाचार्य आर्यदेशजात, लघुकर्मा, ब्रह्मचर्यादि गुणोपपेत, पंचाचार सम्पन्न, राजादि सत्ताधारियों का अविरोधी, श्रुताभ्यासी, तत्वज्ञानी, भूमिलक्षण गृहवास्तुलक्षणादि का ज्ञाता, दीक्षाकर्म में प्रवीण, सूत्रपातादि के विज्ञान में विचक्षण, सर्वतोभद्रादि चक्रों का निर्माता, अतुल प्रभाववान्, आलस्य विहीन, प्रिय वक्ता, दीनानाथ वत्सल, सरल स्वभावी, अथवा मानवोचित सर्वगुण सम्पन्न हो।" प्राचार्य की वेश-भूषा के सम्बन्ध में इसी में आगे लिखा है कि प्रतिष्ठा के दिन : "वासुकि निर्मोकलधुनी प्रत्यग्रवाससीदधानः करांगूलीविन्यस्त कांचनमुद्रिकः, प्रकोष्ठदेशनियोजित कनककंकणः, तपसा विशुद्ध देहो वेदिकायामुदङ्मुखमुपविश्य"१ (निर्वाणकलिका १२ । १) अर्थात् बहुत महीन, श्वेत और कीमती नये दो वस्त्रधारक, हाथ की अंगुली में सुवर्ण मुद्रिका और मणिबन्ध में सुवर्ण का कंकरण धारण किये हुए, उपवास से विशुद्ध शरीर वाला प्रतिष्ठाचार्य वेदिका पर उत्तराभिमुख बैठकर... उपरोक्त महान् गुणों से विभूषित, कंचन-कामिनी के त्यागी श्रमणोत्तम के लिये सुवर्ण मुद्रिका को करांगुली में और कर में स्वर्ण कंकण धारण करने का विधान केवल हठाग्रही को छोड़कर अन्य कोई विज्ञ शास्त्रानुकूल सिद्ध नहीं कर सकता । प्रतिष्ठा विधि के इस उल्लेख पर क्षीर नीर विवेकपूर्ण दृष्टि से प्रकाश डालते हुए स्व० पंन्यास श्री कल्याणविजयजी महाराज ने लिखा है : .......... पादलिप्तसूरि ने जिस मुद्रा कंकरण परिधान का उल्लेख किया है वह तत्कालीन चैत्यवासियों की प्रवृत्ति का प्रतिबिम्ब है । पादलिप्त १. प्रबन्ध निचय, पृष्ठ २०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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