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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
__संघपति एवं संघ की प्रार्थना स्वीकार कर मुनिश्री विजयचन्द्र ने सर्वज्ञप्रणीत श्रावक धर्म पर हृदयस्पर्शी एवं अन्तर्चक्षुओं को उन्मीलित कर देने वाला प्रकाश डालते हुए श्रावक के अथ से लेकर इति तक के समस्त कर्त्तव्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। मुनि विजयचन्द्र ने श्रावक के षडावश्यकों, जिनपूजा, साधुवन्दन आदि की विधि बताते हुए श्रावकवर्ग के लिए उत्तरासंग से यह सब धार्मिक कर्तव्य (कार्य) करने का उपदेश दिया। इस सम्बन्ध में वीरवंश पट्टावली, अपर नाम विधिपक्ष पट्टावली में निम्नलिखित गाथाएं द्रष्टव्य एवं मननीय हैं :
अह उत्तरसंगेण य, छव्वीहमावस्सयं कुरांतो सो। सामाइयरगुट्ठाणं, साचवइ सुत्तमुवउत्तं ।।५८।। अह उत्तरसंगेणं, दुवालसावत्तवंदणं सद्धो।
वीय वंदणे गुरुणं, पयलग्गे एव सो कुणइ ।।६८।।
मुनि विजयचन्द्र के उपदेश से संघपति श्रेष्ठि यशोधन ने धर्म के विशद्ध स्वरूप को भलीभांति हृदयंगम किया और तत्काल उसने श्रावक के बारह व्रत अंगीकार किये।
पावागिरि से संघ सहित अपने नगर की ओर लौटते समय यशोधन ने मुनिश्री विजयचन्द्र और उनके साधुओं को भी अपने साथ लिया। अपने नगर भालिज्यपुर में पहुंचने के पश्चात् यशोधन ने एक अतिसुन्दर सुरम्य जिनभवन का निर्माण करवा कर उसमें ब्रह्मचर्यव्रतधारी श्रावकों से विधिपूर्वक भगवान् ऋषभदेव के बिम्ब की प्रतिष्ठा करवाई ।' चक्रेश्वरी देवी के वचन से मुनि विजयचन्द्र विधिपक्ष के प्राचार्य बने ।
श्रावकाग्ररणी श्रेष्ठि यशोधन ने मुक्तहस्त हो विपुल धनराशि व्यय कर बड़े ठाट-बाट एवं हर्षोल्लास के साथ रक्षितसूरि (मुनिश्री विजयचन्द्र) का पट्टमहोत्सव किया। प्राचार्यपद पर आसीन होते ही रक्षितसूरि ने उस समय के श्रमण-श्रमणीवर्ग में व्याप्त घोर शिथिलाचार का उन्मूलन करने के साथ-साथ विशुद्ध चारित्र के अभाव को दूर किया। उन्होंने आगम-प्रणीत विशुद्ध श्रमणाचार की पुनः प्रतिष्ठापना करने के उद्देश्य से विधि मार्ग की प्रतिष्ठापना की। रक्षितसूरि (मुनि विजयचन्द्र) ने विधिमार्ग की संस्थापना के साथ ही अपने गच्छ की एक ऐसी समाचारी उद्घोषित की, जो उनकी मान्यतानुसार आगमवचनों के अनुरूप थी। आचार्यश्री रक्षितसूरि द्वारा उद्घोषित उस समाचारी के प्रमुख नियम निम्नलिखित रूप में उपलब्ध होते हैं :
१. विहिपुग्वं सुपट्टा, बम्भव्वयसावहिं कारविया । ठवियं च रिसहबिंबं, महा महा सहरिसा जाया ।।३।।
__ --वीरवंशपट्टावली, हस्तलिखित प्रति, लालभवन, जयपुर ।
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